( उन्नतीस ) और प्रकरण में हैं। वस्तुत: ये दोनों भेद रूपक भेदों के निकट पड़ जाते हैं; अतः इन्हें पूर्णरूप से उपरुपकों में सम्मिलित नहीं किया जा सकता। दूसरी बात यह है कि भरत ने रूपक के १० भेदों के साथ ११वें भेद नाटिका का भी उल्लेख कर दिया। इनका कथानक भी परिमाण में कुछ अधिक ही होता है। नाटिका का रूप बंधा बंधाया होता है। इसका प्रधान नायक प्रख्यात व्यक्ति होता है तथा कथानक कल्पित होता है। नायिका कुलवती राजकुमारी होती है; वह अभीष्ट नायक के अन्तपुर में किसी न किसी प्रकार पहुंच जातीहै। अधिकतर राजा का मन्त्री किसी राजकुमारी के विषय में यह सुनकर कि ज्योतिषियों के कथानुसार उसका पति चक्रवर्ती सम्राट होगा किसी न किसी प्रकार उसे अपने राजा के अन्तर्र में ले आताहै जहां किसी विपत्ति में फंस जाने के कारण उसे राजा के अन्त:पुर में प्रच्छन्न रुप में रानी की दासी बनकर रहना पड़ता है। संयोगवश राजा का उससे प्रच्छन्न प्रेम हो जाता है। जिसमें विदूषक और उसकी एक सहेली का भी योगदान रहता है। तब रानी की ओर से विघ्न लगते हैं जिससे छुटकारा पाने के लिये राजा को प्रयत्न करने पड़ते हैं। अन्त में उसका राजकुमारी होना सिद्ध हो जाता है जो अधिकतर रानी की ही कोई रिश्तेदार होती है। तब रानी ठसे राजा से विवाह करने की आज्ञा दे देती है। इस प्रकार प्रसिद्ध नायक और कल्पित कथानक के कारण नाटिका में नाटक और प्रकरण दोनों का मिला जुला रूप होता है। प्रकरणिका भी नाटिका के समान ही होती है। अन्तर यह होता है कि प्रकरणिका में नायक कोई प्रख्यात राजर्षि नहीं होता अपितु कोई सार्थवाह या बनियां होता है। वैसे प्रकरणिका में कोई ऐसी बात नहीं होती जिससे उसे पृथक् रूप में एक भेद मान लिया जाय। विश्वनाथ द्वारा माने गये १८ भेदों में नाटिका और प्रकरणिका को छोड़ देने से १६ भेद शेष रह जाते हैं जिनमें १० एकाई हैं और ६ अनेक अंकों वाले । नाटिका और प्रकरणिका में तो ४ अंक होते ही हैं। शेष का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है। (अ) अनेक अंकों वाले उपरूपक (९) प्रस्थान- दो अंकों का रूपक। इसका नायक दास और नायिका दासी होती है। उपनायक हीन जाति का होता है। भारती और कैशिकी ये वृत्तियां होती हैं और इसमें पूर्वराग, मानप्रवास का अभिनय रहता है और वसन्त का उत्कण्ठा पूर्ण वर्णन किया जाता है। चार खण्डों में बांटकर नृत्य किया जाता है। अन्त में वीर रस का भी निबन्धन रहता है। अभीष्ट अर्थ का उपसंहार सुरापान के द्वारा किया जाता है। ताल और लय का मिश्रण और विलास की अधिकता इसकी विशेषताएँ हैं। उदाहरण- शृङ्गारतिलक। (२) शिल्पक- चार अंकों का उपरूपक। इसमें चारों वृत्तियां होती हैं। शान्त और हास्य को छोड़कर सभी रस होते हैं। ब्राह्मण नायक होता है; ठपनायक हीन प्रकृति का
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