( पैतालीस ) विचार एवं क्रिया कलाप के उन्नायक ईश्वर प्रदत्त महाग्रन्थ हैं। उनको भूलकर ही भारतीय जाति पराभव के गर्त मे गिरी है। भारतीय जनता का उद्धार वेदों की ओर पुनः जाने से ही सम्भव होगा। सत्यव्रत ने स्वामी जी के चरित्र और उनके ठपदेशों पर महर्षिचरितामृत नामक एक नाटक की रचना की जिसमें ५ अंक हैं- शिवरात्रिव्रत, प्रबोध, गुरुदक्षिणा, पाखण्डखण्डन और मृत्युञ्जय । समाजसुधार के जिन तत्वों को लेकर ये उन्नायक चले थे उनमें प्रमुख थे बालविवाह वृद्धविवाहदहेजप्रथा, छुआछूत, वर्णव्यवस्था के कठोर नियम इत्यादि। इन विषयों को लेकर भी संस्कृत साहित्य में कतिपय नाटकों की रचना की गई। उनमें कतिपय निम्न लिखित है (अ) विवाहविडम्बनम्- जीवन्यायतीर्थ लिखित वृद्ध विवाह से सम्बन्धित नाटक । इसमें ६० वर्ष के एक ऐसे वृद्ध का चित्रण किया गया है जो कन्या के पिता की गरीवी का लाभ उठाकर उससे विवाह करने के लिये आतुर है। कुछ नवयुवक उसे छकाने की योजना बनाते हैं- वे वृद्ध से २००० कन्या के पिता को देने के लिये १००० विवाह व्यय के लिये १५०० जेवरों के लिये और कुछ राशि तरुणों का मुख बन्द करने के लिये वृद्ध से ले लेते हैं और उसी पैसे से ठस गरीब कन्या का विवाह कर देते हैं। (आ) मिथ्याग्रहणम्- इसमें बहुपत्नी प्रथा का मजाक उड़ाया गया है। यह लीलाराव दयाल की रचना है। बहुपली प्रथा मुसल्मानों में विशेष रूप से प्रचलित है। अत: मुसल्मानों के प्रसंग में ही इसे दिखलाया गया है। इसमें पति के बहुपीत्व से मुहम्मद की पत्नी अमीना की दयनीय दशा का चित्रण किया गयाहै । (३) बालविधवा- लीलाराव दयाल की कृति जिसमें बाल विधवा के पतन का चित्रण किया गया है। वह एक नवयुवक के प्रेमजाल में फंस जाती है। लेखक का सन्देश है कि ऐसी कम आयु की विधवाओं को सारा जीवन नारकीय दशा में रहने के लिये छोड़ देने की अपेक्षा यह अधिक अच्छा है कि उनका विवाह कर दिया जायअन्यथा उनके पतन की सर्वदा सम्भावना बनी रहती है। (ई) नाटककारों ने विधवाओं के सामने भी एक योजना रक्खी है। केवल विवाह ही नहीं जीवन की सफलता के लिये दूसरे क्षेत्र भी हैं। डा. रमा चौधरी के लिखे नाटक रसमय रासमणि में एक विधवा रासमणि को ऐसी ही कहानी है जो अपने वैधव्य जीवन को अंग्रेजों द्वारा सताई गई महिलाओं के संरक्षण में अपने जीवन को सफल बनती है। () चामुण्डा- नामक नाटक में एक ऐसी ही विधवा का कमानक है जो अपने वैधव्य जीवन को शिक्षा में लगा देती है। विलागत आकर डक्टी शिक्षा प्राप्त करती है। अब लौटकर स्वदेश आती है तब समाज से स्वीकार नहीं करता और मजाक उड़ाता है। किन्तु जब वह प्रधान की बहू को रोगमुक्त कर देती है तब समाज में सम्मानित पद
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