पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/५८

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( उनचास ) की पुकार थी और उन्होंने अनुभव कर लिया था कि वे कहीं अधिक उपयोगी विकास मूलक प्रक्रिया सिद्धान्त को प्रोत्साहित करने में समर्थ हैं। इसके लिये उन्होंने 'बन्देमातरम्’ पत्रिका का सम्पादन निवेदिता बहन के सुपुर्द कर ठससे विराग ले लिया। 'बन्देमातरम्' का गीत उन्हें सर्वाधिक प्रिय था; जिसने उन्हीं को नहीं समस्त राजनैतिक नेतृत्व को और जनसाधारण को प्रभावित किया था। स्थायी साधना के लिये बंगाल को छोड़ कर वे पाण्डिचेरी चले गये और अरविन्दाश्रम की स्थापना के साथ अनेक सैद्धान्तिक ग्रन्थों की रचना की, योग पद्धति को, दर्शन को और कविता को नई दिशा प्रदान कर अक्षयकीर्ति उपार्जित की। 'बन्देमातरम्’ गीत को जो बंकिमचन्द्र के समय से चला आ रहा था कहा जाता है उन्होंने ही ‘भारतमाता' का ठद्धोष प्रदान किया। यतीन्द्र विमल चौधरी ने उनके क्रियाकलाप और जीवन के विषय में ‘आरंत हृदयार विन्दम्’ नाटक की रचना की। भगिनी निवेदिता के चरित्र को लेकर डा. रमा चौधरी ने 'निवेदितनिवेदितम्' नाटक की रचना की। (आ) झांसीरानी लक्ष्मीबाई ने १८५७ के सशस्त्र विद्रोह में अंग्रेजी साम्राज्य का मुकाबला कर अक्षयकीर्ति उपार्जित की थी उनकी यशोगाथा का चित्रण कुमार विमलचौधरी के नाटक आरतलक्ष्मी में किया गया है। (e) लोकमान्य बालगंगाधर तिलक भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के मूर्धन्य नेताओं में एक थे। उनके विषय में दो नाटक प्राप्त होते हैं- () श्रीराम वेलणकर लिखित ‘लोकमान्य स्मृति- इसमें तिलक के अन्तिम जीवन का चित्रण किया गया है। (i) तिलक-यनम् यह भी श्रीराम वेलणकर की ही रचना है जिसमें तिलक के मुकदमें का कोर्टसीन दिखलाया गाय है। (ई) महात्मागांधी अनन्य नेता थे जिनका नाम लेकर और जयजयकार कर स्वतन्त्रता सेनानी आगे बढ़ते थे; जिन्होंने भारत में ही नहीं दक्षिण अफ्रीका में भी स्वतन्त्रता की ज्योति जलाई थी। इनके विषय में प्रत्येक भाषा और साहित्य में बहुत कुछ लिखा गया है। संस्कृत में भी कई नाटक लिखे गये जिनमें कतिपय ये हैं- () मधुरा प्रसाद दीक्षित लिखित गान्धी विजयम् इसमें अफ्रीका और भारत में उनकी गतिविधियों का चित्रण किया गया है। (i) भारततातम्- डा. रमा चौधरी लिखित गान्धी प्रशस्ति परक नाटक। गान्धी जी को राष्ट्रपिता की उपाधि दी गई है। इसी को लेकर इस नाटक का नामकरण किया गया है। (ii) मुकुन्दलीलामृतम्- गन्धी जी की तुलना उनके कार्य काल में प्रायः भगवान् कृष्ण से की जाती थी। कृष्ण को मोहन कहा जाता है और गान्धी जी का नाम मोहन दास था। इसी तुलना को लेकर विश्वेश्वर दयाल ने इस नाटक की रचना की थी। इसमें कृष्ण गान्धी रूप और कंस ब्रिटिशसरकार रूप माने गये हैं। (उ) प्रथम कोटि के नेताओं में सुभाषचन्द्र बोस का नाम अत्यन गौरव के साथ लिया जाता है। पहले ये कांग्रेस के प्रथम कोटि के नेता रहे थे। जब द्वितीय विश्व युद्ध