( बावन ) (ई) उस समय स्वतन्त्र भारत की अहम समस्या थी - हैदराबाद पर अधिकार करने की। हैदराबाद भारत का सबसे बड़ा राज्य था जिस पर निजाम का शासन था। उस समय वहां के प्रधान मन्त्री लायक अली खां थे। इसकी स्थिति काश्मीर से सर्वथा विपरीत थी। आबादी हिन्दुओं की थी और शासन मुसल्मान का था। वहां की समस्त शासन व्यवस्था पर एक अनधिकृत व्यक्ति रजाकार कासिम रिची ने पूरा अधिकार जमा लिया था। निजाम और प्रधान मन्त्री दोनों उसकी उंगलियों पर नाचते थे। भारत सरकार के प्रतिकूल उसके वक्तव्य आते थे। वह नित्य लाल किले पर झण्डा फहराने का उत्साह प्रकट करता था और युद्ध की धमकी देता था। निजाम व्यक्तिगत रूपसे अंग्रेज सैन्य सञ्चालकों को नियुक्त करता था और धन के बल पर भारत से निपटने के लिये सैनिक शक्ति बढ़ा रहा था। भारत सरकार ने १ वर्ष का समय दिया था। किन्तु परिस्थिति ऐसी बदली कि भारत सरकार को समझौता तोड़कर पुलिस कार्यवाही करनी पड़ी और निजाम शरणागत हो गया तथा राज्य का भारत में विलय स्वीकार कर लिया गया। भारत सरकार ने अन्य राज्यों का विलय प्रिवी पर्स के आधार पर किया था। निजाम के शरणागत हो जाने और राज्य का विलय स्वीकार कर लेने पर भारत सरकार ने उसे भी प्रिवी पर्स दे दिया । इस घटना पर नीपजे भीमभट्ट ने ‘हैदराबादविजयम्' शीर्षक नाटक की रचना की। 0 इसमें रजाकारों के उपद्रव, नेहरु की अतिक्रमण के लिये स्वीकृति, कासिम रिजवी के कहीं है भाग जाने, नेहरु द्वारा पटेल को बधाई दिये जाने आदि घटनाओं का चित्रण किया गया (७) नेहरु को अपने शासन काल में चीन से युद्ध की एक गम्भीर समस्या का सामना करना पड़ा था। नेहरु चीन के प्रति कुछ अतिरिक्त पक्षपाती थे। आन्दोलन काल में वहां के प्रधान मन्त्री चांकाई शेक उनके मित्र थे। किन्तु भारत के स्वाधीन हो जाने के कुछ ही समय बाद कम्यूनिष्टों के आक्रमण से चांकाई शेक को भाग कर फामोंसा में शरण लेनी पड़ी और कम्यूनिटों का शासन स्थापित हो गया। अध्यक्ष माओत्सेतूंग और प्रधान मन्त्री चाउ एन लाऊ बन गये। नेहरु ने नई सरकार से भी मैत्री बनाये रखी और तिब्बत पर चीन के विशेषाधिकार के समझौते को जारी रखा। चीन की तिब्बत के विषय में नियत साफ नहीं थी। वह तिब्बत के दलाई लामा को सब तरह से परेशान कर तिब्बत को पूर्ण रूप से निगल जाना चाहता था। दलाई लामा को विवश होकर दलवल के साथ भारत में शरण लेनी पड़ी और भारत ने अपनी चिरन्तन संस्कृति के प्रति सच्चाई प्रकट करते हुए उन्हें पूरा आश्रय प्रदान किया। उधर सिक्यांग को मुख्य भूमि से जोड़ने के लिये चीन ने भारतीय क्षेत्र में होकर सड़क बना ली जिस पर कुछ झड़पें शुरु हो गई । ये झड़पें अधिकतर पश्चिम तक ही सीमित थीं। अकस्मात् पूर्वी क्षेत्र में पूरी शक्ति से आक्रमण कर दिया गया और चीनी सेनाएँ आसाम के निकट वोमडीला तक आ गई। यह भारत की बहुत बड़ी पराजय थी । किन्तु जिस प्रकार चीन ने अकस्मात्
पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/६१
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति