पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/११०

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भवाचू वा (वि० ) गूंगा | मूक । ( न० ) ब्रह्म । ध्रुवांच ) ( वि० ) १ नीचे की थोर झुका हुआ । वाचे २ अपेक्षाकृत नीचा | ३ सिर के बल | ४ दक्षिणी | (पु० और न० ) ब्रह्म । वाची १ दक्षिण | २ नीचे का लोक । प्रवाचीन | वि० ) १ नीचे की ओर। सिर के बल । २ दक्षिणी | ३ उसरा हुआ। प्रवाच्य (वि०) १ जो कहने योग्य न हो । २ बुरा | ३ | ठीक ठीक या स्पष्ट न कहा हुआ। जो शब्दों द्वारा प्रकट न किया जा सके। --देशः, (पु० ) भग | योनि । ( १०३ ) प्रचित } ( वि० ) झुका हुआ | नीचा । अवाञ्चित विकः ( पु० ) भेड़ । प्रविका (स्त्री० ) भेड़ी | अविकम् ( न० ) हीरा । (स्त्री ) भेड़ । भेड़ी। अविकत्थ ( वि० ) जो शेखी न मारता हो, जो अभि मान न करता हो ! जो अकड़ता न हो। [न हो । अविकत्थनम् (वि०) जो घमंडी न हो, जो अकड़वा अविकल ( वि० ) १ समूचा सम्पूर्ण पूरा तमाम सब । ज्यों का त्यों । २ नियमित | कम से। गढ़बड़ नहीं । अविकल्प (वि० ) अपरिवर्तनशील अधिकल्पः (पु०) १ सन्देह का अभाव । २ निश्चया- स्मक निर्देश या आज्ञा अविकल्पम् (अव्यया० ) निस्सन्देह । निस्सकोच । अविकार (वि० ) जिसमें विकार न हो । जो अपरि वर्तनशील हो । व्यवाण (वि० ) नदी पार करने वाला। वाषट: ( पु० ) उस स्त्री का पुत्र जो उस स्त्री की जाति के किसी पुरुष के ( पति को छोड़ ) वीर्य | से उत्पन्न हुआ हो। द्वितीयेन तुः पिश शर्खयां मजायते । "यवावट" इति रुपातः शूद्रधर्मा स जातितः ॥ अवावन् (पु० ) चोर | चुराकर ले जाने वाला। अविकारः ( पु० ) अपरिवर्तनशीलता । यविकृतिः ( स्त्री० ) परिवर्तन का अभाव । विकार का अभाव । २ (सांख्य दर्शन में ) प्रकृति जो इस संसार का कारण मानी जाती है। श्रविक्रम (वि० ) शक्तिहीन । निर्बल । विक्रमः ( पु० ) भीरुता । डरपोंकपना | कादरता । अवासस् (वि० ) नंगा । जो कपड़े पहिने हुए न हो। | अविक्रिय ( वि० ) अपरिवर्तनशील । ( १० ) घुद्धदेव का नाम । विक्रियम् ( न० ) ब्रह्म । [सम्पूर्ण । वास्तव ( वि० ) [ स्त्री० – अवास्तषी ] १ जो असली न हो । २ निराधार ध्यषिः ( स्त्री० ) १ भेड़ | ( go ) २ सूर्य | ३ पर्वत । अयौक्तिक । श्रविक्षत ( वि० ) जो कम नहीं हुआ। समूचा । अविग्रह ( वि० ) शरीर रहित । अवैहिक | अशरीरी | ब्रह्म की उपाधि । प्रवानः (पु ) श्वास प्रश्वास । अवांतर ) ( वि. ) १ मध्यवर्त्ती | २ अन्तर्गत । अवान्तर) शामिल | ३ गौण | ४ फालतू । विघ्न राजकर जिसमें भेड़ें दी जाती हैं। दुग्धं- दूसं, मरीसं, सोढ़, ( न० ) भेड़ी का दूध –पटः, ( पु० ) भेड़ी का चाम। ऊनी वस्तु । -पादः, ( पु० ) गड़रिया | -स्थलं, ( न० ) भेदों की जगह । एक नगर का नाम । "अविस्थलं" वृक्षं मादी वारणावतम्” अवारः ( ० ) ३ अवार ( प्राप्तिः ( स्त्री० ) प्राप्ति । उपलब्धि । अवाप्य ( स० का० कृ० ) प्राप्त करने योग्य १ समीप का नदीसट । निकट वर्ती नदीतट १२ उस ओर। न० ) ) - पारा, ( पु०) समुद्र ।- पारोण, (वि० ) १ समुद्र का या समुद्र से सम्बन्ध रखने वाला | २ नदी पार करने वाला । -महाभारत | ४ पवन । वायु | ४ ऊनी कंबल । शाल । ६ दीवाल । छार दीवाली | ७ चूहा । ( स्त्री० ) १ भेड़ २ रजस्वलास्त्री । -कटः, ( पु० ) भेड़ों का गिरोह – कटोरणः, ( पु० ) एक प्रकार का | व्यविघ्न (वि० ) विना विनवाधा का । विग्रहः (पु० ) (व्याकरण का ) नित्य समास अविघात ( वि० ) बेरोक टोक बिना अड़चन का।