अष्टमिका नष्टमिका ( स्त्री० ) चार तोले की तौल विशेष | दशन् (वि० ) अठारह / --उपपुराणम् ( न० ) अठारह उपपुराण जिनके नाम ये हैं - शादा समस्कुद रोक्कं नारसिंहमतः परं । तृतीयं बाद कुआरे तुभाषितम् । चतुर्थ शित्रचनख्य साक्षान्नन्दोश भाषितम् । दुर्वासातमा नारदोक्तमतः परम् । कापिलं मानवं चैव तयैवोशनसेरितं । ब्रह्माण्ड वारण चाथ कालिकाहयमेव च । माहेश्वरं तथा शांव और सर्वार्थस् । पराश नवरं तथा भागवतद्वय । इदनादर्श मोक्तं पुरः कर्मसंचित | चतुर्धा सस्थितं पुण्यं संदितानां प्रभेदतः । - हेमाड़ी | -पुराणं, (न०) १८ पुराण जिनके नाम ये हैं:- १ ब्राह्म, २ पाझ, ३ विष्णु, ४ शिव, ५ भागवत, | ६ नारदीय ७ मार्कण्डेय, ८ अग्नि, ६ भविष्य, १० ब्रह्मवैवर्त ११ लिङ्ग १२ बराह, १३ स्कन्द, १४ वामन, १५ कौर्म, १६ मत्स्य, १७ गरुड़ १८ ब्रह्माण्ड। -विद्या, ( स्त्रो० ) १८ प्रकार की विद्याएं या कलाएं | यथा - अंगानि वेदाचारी मीमांसा न्यायविस्तरः | धर्मशा पुराणं विद्या सताश्चर्तुदश । धनुर्वेद गान्धर्वश्चेति ते त्रयः अर्थशास्त्रं चतुर्थ तुवादशैव तु । अष्टि: (स्त्री० ) १ खेल का पांसा | २ सोलह की संख्या । ३ योज | ४ छिलका । छाल अष्टीला (स्त्री०) १ कोई गोल वस्तु | २ गोल पत्थर या स्फटिक । ३ छिलका | छाल | ४ बीज का अनाज । प्रसङ्ग असंसृष्ट (वि० ) जो मिश्रित न हो। जो संलग्न न हो । बटवारा होने के बाद फिर जो शामिलात में न रहे। ध्यस् (धा० पर · ) [ अस्ति, आसीत, अस्तु, स्यात् ] होना, जिंदा रहना । ( कोई बात का ) होना लेना। जाना। पैदा [ बद्ध न हो। असंस्थित (बि० ) १ जो व्यवस्थित न हो। अनिय- मित । २ एकत्रित नहीं। प्रसंस्थितिः ( स्त्री० ) गड़बढ़ी | घालमेल । असंह (वि० ) जो जुड़ा न हो। जो मिला न हो । बिखरा हुआ । [ या जीव । असंहतः (पु० ) सांख्य दर्शन के अनुसार असकृत् (अन्यथा० ) एक बार नहीं बारंबार । अक्सर । – समाधिः बारंबार की समाधि था ध्यान । -गर्भवासः ( पु० ) बारंबार जन्म | असक्त ( वि० ) १ जो किसी में सक्त न हो। २ फला- भिलाष से रहित । सांसारिक पदार्थों से विरक्त असतं ( अध्यया० ) १ किसी में विशेष अनुराग न रखते हुए । २ निरन्तर | सतत । असक्थ (वि० ) जिसके जंघा न हो । सखिः (स्त्री० ) शत्रु । विरोधी । | सगोत्र (वि० ) जो एक गोत्र या कुल का न हो। संकुल | १ (वि०) जहाँ बहुत भीड़ भाड़ न हो। असङ्कुल ) २ खुला हुआ । साफ । चौड़ा ( मार्ग ) असंकुल: } (पु०) चौड़ा मार्गं । असङ्कलः प्रसंख्य (वि० ) गणना के परे जिसकी गणना म हो सके । [ संख्यावाला । असंयमः (दु०) संयम का अभाव । रोक का न होना । | प्रसंख्येय (वि० ) अगणित । संख्यातीत । असंख्यात (वि० ) अगणित संख्यातीत अन असंयत ( वि० ) संयम रहित । क्रमशून्य। जो नियम यह इन्द्रियों के विषय में प्रयुक्त होता है। संख्येयः (पु०) शिव जी की उपाधि विशेष | असंशय ( दि० ) संशयरहित । निश्चित | [ न पड़े || श्यसंग ( ( वि० ) १ अननुरक्त । सांसारिक या लौकिक असंभव ( वि० ) जो सुनने के परे हो। जो सुनाई ध्यसङ्ग बंधनों से मुक्त । २ अनवरुद्ध । जो मौयराम असस्कृत (वि० ) १ विना सुधारा हुआ अपरि भाजित | २ जिसका संस्कार न हुआ हो। व्रात्य । असंस्कृतः (पु० ) व्याकरण के संस्कार से शून्य | अपशब्द । बिगड़ा हुआ शब्द | संस्तुत ( वि० ) १ अज्ञात अपरिचित । २ असा- धारण विलक्षण । संस्थान (न० ) १ संयोग का अभाव | २ गड़बड़ी ३ अभाव | कमी ।
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