पेशान पेशान (वि० ) शिव जी का पेशानी (स्त्री०) १ ईशान उपदिशा । २ दुर्गा का नाम ।। पेश्वर (वि० ) [ स्त्री० - पेश्वरी ] विशाल | २ | बलवान् । शक्तिशाली | ३ शिव जी का । ४ सर्वे : परि। राजकीय ५ देवी। ( १९५ ) नम् पेपमस्तन ( वि० ) १ वर्तमान वर्ष का चालू ऐपमत्स्य ) साल का | पेश्वरी (स्त्री० ) दुर्गादेवी का नाम । पेश्वर्यम् ( म० ) १ प्रभुत्व । आधिपत्य | २ शक्ति । यल। शासन अधिकार | ३ राज्य | ४ धन सम्पत्ति 1 विभव | ५ भगवान की सर्वव्यापकसा की शक्ति सर्वव्यापकता । 1 ऐशमस् (अव्यया०) इस वर्ष के भीतर इस वर्ष में ऐष्टिक (वि० ) [स्त्री०- पेटिकी] यक्षीय | संस्कारा स्मक । शिष्टाचार सम्बन्धी ।— पूर्तिक, ( बि० ) इष्टापूर्त ( यज्ञ और धर्माने ) से सम्बन्ध युक्त पेहलौकिक (वि० ) [ स्त्री० - पेहलौकिकी ] इस लोक का सांसारिक दुनियवी । ऐहिक ( वि० ) [ स्त्री०- ऐहिकी ] १ इस लोक या स्थान का सांसारिक दुनियवी | २ स्थानीय | ऐहिकं (न० ) ( इस दुनिया का ) धंधा व्यवसाय | 1 [1] श्री ओ-संस्कृत वर्णमाला था नागरी वर्णमाला का ग्यारहवाँ वर्ण। इसका उच्चारण ओट और कण्ठ से होता है। इसके उदात्त, अनुदास, स्वरित तथा सानुनासिक भेद होते हैं। श्रो (पु०)का नाम ( अन्यथा० ) ओह का संक्षिप्त रूप पुकारने याद करने और दया प्रदर्शित करने के काम में प्रयुक्त होने वाला अव्यय विशेष ओक (पु० ) घर मकान २ छाया रखा। बचाव | आद। शरद् आश्रय । ३ पड़ी | यह । ओकणः ओकणिः }(I० ) खटमल । खडकीरा । ओकस् (न०) 1 गृह • मकान । २ आश्रय | शरण। (० पर० ) [ ओखति, थोखित ] १ सूख जाना २ योग्य होगा। पर्याप्त होना। ३ शोभा बढ़ाना। सजाना 8 अस्वीकृत करना रोकना घाड़ करना। } प्रोघः (पु० ) १ जल की बाढ़ जल की धार जल का प्रवाह २ बूबा | ३ ढेर | समुदाय | ४ सम्पूर्ण । समूचा ५ अविच्छिन्नता | सातत्य | ६ परम्परा परम्परागत उपदेश | ७ नटराज अन्यथात्मक रूप में इसका अर्थ होता है। सम्मान- पूर्ण स्वीकृति गम्भीर समर्थन । हाँ। बहुत धच्छा। मङ्गल स्थानान्तकरण बवाय | ३ ह्म प्राव ओज् (घा० उभय० ) [ योजति, भोजयति, भोजित ] बलवान होना । योग्य होना। योज ( वि० ) विषम ऊँचा 1 | भोजसू ( न० ) १ प्राणबल सामर्थ्य शक्ति | २ उत्पादनशक्ति | ३ चमकं । दीति | ४ काव्यालङ्कार विशेष ५ जल ६ धातु जैसी आभा श्रो सोन योजस्य } ( चि० ) महबूत | शक्तिशास्त्री । भोजवित् } (वि० ) मावृत । शक्तिशाली। श्रोडू: (पु० ) [ बहुवचन ] उड़ीसा प्रदेश और उड़ीसा प्रदेश वासी। | ओडूम् ( न० ) जवाकुसुम । [ छोर तक सिला हुआ। श्रोत (वि० ) बुना हुआ सूत से एक छोर से दूसरे श्रोतप्रोत ( वि० ) १ अन्तत एक में एक ना हुधा गुथा हुआ परस्पर लगा और उसका हुआ । २ सव ओर फैला हुधा । तुः (५०) विह्नी । ओंकारः ) ( ० ) १ एक पवित्र पद जो वेदाध्ययन | योदनः ( पु० र) के पूर्व और अन्त में कहा जाता है| २ | योदनम् (५० । भात। भोज्य पदार्थ भिगोया और दूध से रोचा हुआ है
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