म यां ( ३४५ ) संस्कृत वा नागरी वर्णमाला का पन्द्रहवाँ व्यअन वर्ग का पञ्चम व इसका उच्चारण स्थान मूर्च्छा है। इसके उच्चारण में आभ्यन्तर प्रयल स्पष्ट और सानुनासिक है। बाह्य प्रयस संचार नाद, घोष और अल्पप्राय है । इसका संयोग मुर्दम्य वर्ण, अन्तरस्थ तथा 'म" और "ह" के साथ होता है। तः ( पु० ) १ पूँछ । २ गीदव की पूँछ । छाती ४ गर्भाशय टुनी ६ योदा |७ चोर नजातिच्युत १० वर्वर ११ बौद्ध १२ रत्न | १३ अमृत १४ चन्द में गया विशेष | तक ( क्रि० ) दुःखी होना उड़ना कपटना। ३ हँसना | ४ चिड़ाना। ५ सहन करना । तकिज (वि० ) चली। कपटी । सुतफशी । तकं ( न० ) मठा छाछ-अटः, (पु०) रई/- सारं, (न०) साझा मक्खन | तत् ( धा०प० ) [ तक्षति, तक्ष्णोति तट ] काट डालना देनी से काटना चीरना। टुकड़े टुकड़े करना । २ सँभारना । २ बनाना सिरजना | ४ घायल करना । २ अविष्कार करना । ६ मन में कल्पना करना । त सं २६ या नागरी वर्णमाला का सोलहवाँ व्यञ्जन। तवर्ग | का प्रथम वर्ख। इसका उच्चारण स्थान दन्त है। इसके उच्चारण में विवाद श्वास और अघोष | तगरः (पु० ) पौधा विशेष प्रया लगाये जाते हैं। इसके उच्चारण में आधी | तंक (धा०प० ) [ ति, तडिन] सहन मात्रा का समय लगता है। करना। २ हँसना । २ फष्ट में रहना । तक्षकः ( पु० ) १ बाई लकदहारा २ सूत्रधार | ३ देवताओं का कारीगर वासी मुख्य नागों में से एक का नाम । तक्षणं (२०) काटना। संस्कृतभाषा में व्य से आरम्भ होने वाले शब्दों का अभाव है; किन्तु धातुपाठ में कुछ धातु ऐसी हैं। जिनका प्रथम अवरह है। वास्तव में यह “ए”, "न" स्थानीय है। इनके 'ण" से लिखे जाने का कारण यह है कि इससे यह सूचित होता है कि, "म" कतिपय उपसगों के पूर्व धाने से "ए" के साथ भी परिवर्तित होता है। ऐसी धातुओं की सूची केश के अन्त में दी गयी हैं। तदिनी तक्षन् (पु०) बदई लकड़हारा (जाति से हो या पेशे से हो ) तंक ( पु० ) १ कष्टमय जीवन २ प्रियजन के तङ्क: । वियोग से उत्पन्न कष्ट ३ भय । डर । ४ संगतराश की छैनी | तंकनं 2 तङ्कनम् संग तडू ( न० ) कष्टमय जीवन | दुःखी जीवन | (धा०प० ) [ संगति संगित ] १ जाना । चलना। २ कांपना थरथराना। ३ ठोकर खाना । 1 तंच (घा०प० ) [ तनकि, तंचित] सकोड़ना । त) पीछे हटना | तटः ( पु० ) डालु स्थान। रपट । आकाश । तटः (पु०) तदा स्त्री०) नटी (सी०) तटं (न०) तटस्थ (वि० ) तट का या किनारे पर का। (आल०) उदासीन । १ नदी का किनारा २ शरीर के कतिपय अवयवों की संज्ञा यथा जघनतद, कटितट, कुचवड आदि । (न०) खेठ) तटाक: ( पु० ) तटाकम् (न०) ) तटिनी ( श्री० ) नदी। ताजाव। सं० श० कौ० ४४
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