( ४०२ ) घम' ( स्री० ) धार्मिक चर्या की चिन्ता ।--जः, (पु०) १ औौरस सन्तान । २ बुधिष्टिर का नाम । जन्मन् ( पु० ) युधिष्ठिर का नाम । - जिज्ञासा, ( स्त्री० ) धर्म सम्बन्धी बातें जानने की इच्छा | -जीवन, ( वि० ) वह पुरुष जो अपने वर्ण के धर्मानुसार आचरण करता है 1-ज्ञ, ( दि० ) १ उचित अनुचित जानने वाला | २ उचित । पुण्यात्मा | ऋपिकल्प-त्यागः (पु०) धर्मत्यागी। - दाराः, ( पु० बहुवचन ) धर्मपती - हिन् ( पु० ) राक्षस - धातुः ( पु० ) बुध की उपाधि । - ध्वजः, -ध्वजिन्. (पु० ) पाखण्डी । दम्भी । -नन्दनः, ( पु० ) युधिष्ठिर । --नाथ: ( पु० ) धर्मानुसार स्वामी या मालिक।---नाभः, ( पु० ) त्रिष्णु । - निवेशः, ( पु० ) धर्म के प्रति भक्ति -निष्पत्तिः, ( स्त्री० ) कर्त्तव्यपालन | -पत्नी. (स्त्री०) शास्त्र विधि से परिणीत पत्नी । -पर, ( वि० ) धर्मात्मा पुण्यात्मा । सुकृती | - पाठकः, ( पु० ) धर्मशास्त्र पढ़ाने वाला । पालः, ( 50 ) धर्मशास्त्र रक्षक | - पोडा, ( स्त्री० ) धर्मशास्त्र के विरुद्ध आचरण । -- पुत्रः, ( पु० ) १ वह सन्सान जो कर्त्तव्य समझ कर उत्पन्न की जाब न कि सुखभोग के उद्देश्य से | २ युधिष्ठिर की उपाधि प्रवक्तृ, ( पु० ) १ धर्म शास्त्र का व्याख्याता आईनी मशवराकार । धर्मव्यवस्थादाता | २ धर्मोपदेष्टा | धर्मोपदेशक । -प्रवचनम्, (न०) १ कर्तव्य सम्बन्धी विज्ञान | २ धर्मशास्त्र का व्याख्याता - प्रवचनः, ( पु० ) दुधदेव की उपाधि | - बाणिजिकः, - वाणि- जिकः, ( पु० ) वह मनुष्य जो धार्मिक कृत्यों को इसलिये करता है कि उसे उनसे कुछ लाभ उसी प्रकार हो जिस प्रकार बनिये को व्यापार करने से होता है।-भगिनी; ( स्त्री० ) १ धर्मवहिन । २ धर्मगुरु की पुत्री | ३ समान धर्मपालन करने वाली-भागिनी, ( स्त्री० ) सती भार्या पतियता पत्नी । - भाखकः, ( पु० ) पुराण पाठक | कथावाचक |-भ्रातृ ( पु० ) गुरुभाई। सहपाठी । -महामात्रः, सचिव जिसके हाथ में धर्मादा विभाग हो।– मूलं, (न०) वेद । - युगं, धम अपेत, - कर्म न्याय शामन आईन का प्रयोग करना । - अधिकर- खिन् (पु० ) न्यायाधीश | - अधिकारः (पु०) १ धार्मिक कृत्यों की व्यवस्था | २ न्याय का प्रयोग | ३ न्यायाधीश का पह। -अधानं, (न०) न्यायालय अध्यक्षः (पु०) न्याया- धीश | २ विष्णु अनुठानं, (न० ) धर्मानु सार व्यवहार करना । सदाचरण ( वि० ) सत्कर्म से अलग होना ( न० ) पाप -अरयं, ( न० ) तपोभूमि | ऋप्याश्रम |-- अलीक, (दि०) असदाचरणी भागमः, ( पु ) धर्मशास्त्र | प्राचार्यः (पु० ) १ धर्म की शिक्षा देने वाला | २ घसे शास्त्र का अध्यापक -आत्मजः, ( पु० ) युधिष्ठिर | आत्मन्. ( वि० ) उचित । ठीक सत् । पुण्यमय पवित्र ।-आसनं ( न० ) न्याय का सिंहासन | -इन्द्रः (पु० ) युधिष्ठिर । - ईशः. ( पु० ) यम- राज-उत्तर, (वि०) न्याय करने थौर पक्षपात शून्य होने में प्रसिद्ध /-उपदेशा, ( पु० ) १ धर्मशास्त्र की शिक्षा २ धर्मशास्त्रों का समुच्चय | -~-कर्मन (२० ) - कार्य, ( न० ) – क्रिया, ( स्त्री० ) १ कोई भी धार्मिक कृत्य | कोई भी धर्मानुष्ठान कोई भी धार्मिक विधि या विधान। २ सदाचरण |– कथादरिद्रः, (पु० ) कलियुग -कायः, ( ९० ) बुधदेव ।कीलः ( पु० ) राजा की ओर से दानपत्र या दान देने की आज्ञा | -केतुः ( पु० ) बुद्धदेव |–कोशः, कोपः ( पु० ) धर्मशास्त्रों का समूह या कर्त्तव्य कर्मों का समुच्चय 1-क्षेत्रं, (न० ) १ भारतवर्ष | २ दिल्ली के पास का एक स्थान विशेष । कुरुक्षेत्र - घटः, ( पु० ) वैशाख मास में ( ब्राह्मण को दिया जाने वाला ) सुगन्धयुक्त जल से पूर्ण घड़ा।-चक्रभृत्, ( पु० ) चौध या जैन |--- चरणं. (न० ) चर्या, (श्री०) धर्मशास्त्रानुसार आचरण धार्मिक कर्त्तव्यों का नियमित अनुष्ठान । -चारिन ( वि० ) पुण्यात्मा | धर्मात्मा । ( पु० ) संन्यासी । -चारिणी ( स्त्री० ) १ पत्नी । २ सती स्त्री । -चिन्तनं, चिन्ता,
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