पचन् पञ्चन् i है। - मात्स्य, (वि० ) हर पाँचवे महीने होने ! वाला 1-मुखः, ( पु० ) पाँच नोंकों वाला बाण | - मुद्रा, ( स्त्री० ) तंत्रानुसार पूजन में पाँच प्रकार की मुद्राएं दिखाना आवश्यक है। वे पाँच सुद्रा ये हैं –१ श्रावाहनी | २ स्थापती । ३ सन्निधापनी । ४ संबोधिनी | ५ सम्मुखी करणी । - यामः, ( पु० ) दिन | - रत्नं, (न०) यांच जावाहिर ( १ ) १ नीलम | २ हीरा । ३ पद्मराग | ४ मोती और मूंगा । ( २ ) १ सोना | २ चाँदी ! ३ मोती । ४ लाजावर्त ( रावटी ) २ मूंगा । (३) १ सुवर्ण, २हीरा, ३ नीलम, ४ पद्म- राग और ५ मोती | २ महाभारत के पांच प्रसिद्ध उपाख्यान - रसा, ( स्त्री० ) आँवला - रात्रं, (न० ) पाँच रात का समय --राशिक, ( न० ) गणित का एक प्रकार का हिसाब जिसमें चार ज्ञात राशियों के द्वारा पाँचवी अज्ञात राशि का पता लगाया जाता है। -लक्षणम्, (न० ) पुराण, जिसमें पांच लक्षण होते हैं। [ वे लक्षण ये हैं—१ सृष्टि की उत्पत्ति, २ प्रणय, ३ देव- तात्रों की उत्पत्ति और वंशपरम्परा ४ मन्वन्तर और ५ मनु के वंश का विस्तार । लवणं, ( न० ) पाँच प्रकार के निमक [१ काँच । सेंधा । ३ सामुद्र, ४ विट और सौंचर ] -लाङ्गलकम्, ( न० ) महादान | चर्थात् उतनी भूमि का दान जिसको पाँच हल जोत सकें । लोई, ( न० ) पाँच धातु १ तांबा | २ पीतल | ३ रांगा ४ सीसा और लोहा । (मतान्तरे) | १ सोना । २ चाँढ़ी | ३ तांबा | ४ सीसा और रांगा।- लोहकम्, (न०) पाँच प्रकार का लोहा । यथा -१ वज्रलौह । २ कान्तलौह । ३ पिण्डलौह | ४ क्रौंचलौह । ५ --बटः, ( पु० ) यज्ञोपवीत | जनेऊ 1-- वटी, ( पु० ) पाँच वृक्षों का समूह | [ पाँचवृक्ष | १ अश्वत्थ | २ विल्व । ३ चट | ४ आँवला । १ अशोक ]२ दण्डकारण्य के अन्तर्गत स्थान विशेष । यह स्थान गोदावरी नदी के तट पर नासिक में है। सीताहरण यहीं हुआ था।-- वर्गः, (पु० ) पाँच वस्तुओं का समूह | यथा पाँच सत्व, पाँच इन्द्रियाँ, पाँच महायज्ञ -- ( ४५६ ) पचयति पञ्चयति वर्षदेशीय, (वि० ) लगभग पाँच वर्ष का !-- वर्षीय, (वि० ) पाँच वर्ष का । वल्कलं, ( न० ) पाँच वृक्षों की छाल का समुदाय । ( दे पाँच वृक्ष ये हैं-- बरगढ़ गुलर पीपल, पाकर औरत या सिरिस 1] - गर्षिक, ( वि० ) प्रति पाँचवे वर्ष होने वाला।- वाहिन्, (वि०) ( सवारी जिसमें पांच बोड़े जुते हों। - विंश, ( वि० ) २५वाँ | - विंशतिः, ( स्त्री० ) २२ | पञ्चीस-विंशतिका, ( स्त्री० ) २५ ( कहा- नियों का ) संग्रह | यथा वैतालपचीसी 1- विध, (चि० ) पाँच प्रकार का | पचगुना- वृत्-वृतं, (न० ) ( अव्य० ) पचगुना 1- शत, ( वि० ) जिसका जोड़ ५०० हो । - शतं, ( न० ) १ १०५ | २ पाँचसौ 1- शाखः, ( पु० ) १ हाथ । २ हाथी । - शिखः ( पु० ) शेर सिंह | घ, (वि० ) ( बहु० ) पाँच या छः 1-पट, ( वि० ) ६५ वाँ | -पष्टिः, ( स्त्री० ) ६५ । - सतत, ( दि० ) ७२वाँ। सप्ततिः, (सी० ) ७२१ - सुगन्धकं ( म० ) पाँच प्रकार के सुगन्ध अन्य | यथा । कर्म रक्कोललबङ्गपगुवाकखातोफलपकेन । सभांशभागेन च योजितेन अनादरं पंचसुगन्धकं स्यात् । सूना:, (स्त्री० ) पाँच प्रकार की हिंसा जो गृहस्थों से, घर के कामधंधों में हुआ करती हैं। वे पाँच हिसाएं जिन कर्मों से होती हैं ये ये हैं। चूल्हा जलाना | २ आटा पीसना ३ झाडू देना ४ कूटना | २ पानी का घड़ा रखना।-हायन, ( दि० ) पाँच वर्ष का | पंचक ) (वि० ) १ पाँच से सम्पन्न | पाँच सम्बन्धी । पञ्चक ) २ पाँच से बना हुआ । ४ पाँच से खरीदा हुआ। ५ पाँच फी सदी लेने वाला। पंचकं, पञ्चकम् ( न० ) ) पाँच का जोड़ या पाँच पंचकः, पश्चकः ( पु० ) ) का समूह 1 पंचता, पञ्चता पंचत्वं, पञ्चत्वम् । ( न० ) १ पचगुनी हालत | २ पाँच का समूह | पाँच तत्वों मृत्यु | नाश । का समुदाय | ४ पंचयति पञ्चायति }} ( दि० ) पचगुना ।
पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/४६६
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति