सीहा सोहा (स्त्री० ) तिल्ली दरवट | प्लु ( घा० धारम० ) -[ लवते, लुत ] १ तैरना पैरना • नाव द्वारा पार होना ३ टोलना। इधर उधर कूलना। ४ कूदना | फलौंगना | २ उड़ना। ६ कुना ( स्वर का ) दीर्घ होना । (निर्ज) [ प्लावयति सावयते ] १ तैराना। पैराना । २ हटाना। वहा से जाना । ३ स्नान करना ४ याद में डूवना ५ तारतस्य करना । पछुत ( ० इ० ) १ पैरता हुआ । उतराता हुआ। २ : डूबा हुआ | ३ कूदा हुआ १४ बढ़ा हुआ ५ 4 ( ५८१ ) . प्लुप ( धा० परस्मै० ) [ भाषति, तुष्यति, कृष्णाति प्लुए] बजाना -[ सप्याति ] विदफना सर करना।२ मालिश करना। तेल लगाना३ भरना । I फ ( पु० ) संस्कृत वर्ण माला का वाइलवौं व्यञ्जन और पवर्ग का दूसरा वर्ण। इसका उच्चारण स्थान : ओ है और इसके उधारण में आभ्यन्तर प्रयत्न होता है। इसका उच्चारण करते समय जिहा का अग्रभाग होठों से छूता है, अतः इसे स्पर्शव कहते हैं। इसके वाह्यप्रयत, विवार, चाल और हैं। इसकी गणना महाप्राण में है। प व, भ, तथा म, इसके सवर्थ हैं। फ (न०) १ रूखा बोल | २ कूष्कार | फूंक | ३ का प्लुए (ज० कृ० ) जला हुआ। दग्ध । जेव् (धा० आमने० ) [ प्लेषते] स्विदमत करना | चाकरी करना सेवा करना । सोध: ( पु० ) जलन । दाह सोष ( वि० ) [ खी०- सोपी, ] जला हुआ। जल कर जो भस्म हो गया हो। ढका हुआ। | सो ( न० ) जलन दाह प्लुतं ( न० ) १ छलाँग । फलाँग । २ घोड़े की चाल. विशेष| पौई। गतिः, ( पु० ) १ स्वरगोश | सरहा २ उछलते हुए चलना। फरपट चाल स्तुतिः (फी० ) १ बल की बाढ़ | २ इलोंग । फलोंग ३ घोड़े की चाल विशेष, जिसे पोई कहते है। ४ स्वर का एक भेद जो दीर्घ से भी बड़ा और तीन मात्रा का होता है। प्सा ( धा० परस्मै० ) अक्षा करना । [ प्साति, प्सात, ] खाना । रहात | ३० कृ० ) भक्षय | भोजन भूख । भुषा प्सानम् ( न० ) १ खाया हुआ। २ भोजन | फकिका (स्त्रीज ) वह जो शास्त्रार्थ में दुरुस्थल को स्पष्टीकरण करने के लिये पूर्वपक्ष के रूप में कहा जाय निर्णय के लिये पूर्वपक्ष २ पक्षपात बह राय जो पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष को सुनने के पूर्व हो कायम कर ली जाय फट ( अव्यया ) एक तांत्रिक शब्द जिसको अस्त्र मंत्र भी कहते हैं। फट: ( पु० ) १ सौंप का फैला हुआ फन | २ दाँत | ३ बदमाश । फितव फडिंगा वति ४ जमुहाई १ साफल्य ६ रहस्यमय) टीडी पलिंगा। अनुष्ठान । ७ व्यर्थ की वकूबफ् । गर्मी वा १ ७ उन्नति । उष्ण फण ( धा० परस्मै० ) [ फणति, फणित ] इधर उधर हिलना।२ विना प्रयास उत्पन्न करना । धीरेणः ( 50 ) } साँप का फैला हुआ करः, ( 5० ) साँप -घर फक् (धा०] परस्मै० ) [ फकति फकित ] धीरे चलना खसकना। रेंगना २ गुलती करना। फणा ( सी० ) सूपित व्यवहार करना | ३ बढ़ना । फूल उठना । ( पु० ) १ साँप | २ शिव जी/भृत्. ( पु० )
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