श्र बडिशे बलिशं । ( ५८४ ) ब फल 4 व संस्कृत वर्णमाला का तेईसवां व्यञ्जन और पवर्ग का तीसरा वर्ण |यह दोनों ओोठों को मिलाने पर उच्चारित होता है। इस लिये इसको ओष्ठ्य वर्ण कहते हैं। यह अल्पण है और इसके उच्चा- रण में संचार, नाद और घोय नाम के वाह्य प्रयत्न होते हैं। बद (न० ) बेर के बदर: पु० ) वेर का पेड़ | बद्रयाचनम् ( म० ) तीर्थस्थान विशेष बदरिका ( स्त्री० ) बेर का पेड़ या फल | २ हिन्दुओं के चार धामों में से एक, जिसे बदरिका- श्रम या बदरीनारायण कहते हैं। बदरिकाश्रम (२०) हिन्दुओं का हिमालयपर्वत- स्थित तीर्थस्थान विशेष | च (पु० ) १ चुनावट २ जुधाई ३ वरुण ४ | बड़ा | योनि । ६ समुद्र ७ जल ८ गमन | ३ तन्तुसन्धान १० सूचना | धं (घा० आम० ) [ बहुते, चंहित ] बढ़ना। बदारी ( श्री० ) बेर का पेड़ | उगना | २ढ़ करना। हिमन् ( 50 ) १ बाहुल्य । २ बंहिए (घि०) बहुत अधिक बंहीयस् (वि० ) अतिशय विपुलता । बहुत बड़ा अनेक । वकः ( पु० ) १ बगजा । २ ढोंगी । इलिया। कपटी ३ एक असुर का नाम जिसे भीम ने मारा था। - -- एक और असुर का नाम जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था ५ कुबेर का नाम - चरः- इत्तिः, व्रतवः, --प्रतिकः, -प्रतिन, ( पु० ) वह पुरुष जो नीचे ताकता हो और स्वार्थ | साधन में तत्पर तथा कपदयुक्त हो । ढोंगी। कपट ( पु० ) - निषूदनः | ( पु० ) १ भीम | २ श्रीकृष्ण-वतं, (न० ) डॉम | दम्भ | बकुलः (पु० ) मौलसिरी का पेड़। बकुलं ( ४० ) मौलसिरी के फूल चकेरुका ( श्री० ) छोटी जाति का सारख । बकोटः ( पु० ) सारस बगला बटुः ( पु० ) लड़का । छोकरा | [ इस शब्द का प्रयोग तिरस्कार करने के लिये भी होता है यथा चाँणक्पटुः ] ( न० ) मछली पकड़ने की बंसी । बत ( धन्यवा० ) एक अव्यय जो शोक, खेद, दया, अनुकम्पा सम्बोधन, हर्ष, सन्तोष, आश्रर्य और भरसँना के अर्थ में व्यवहृत किया जाता है। बद्ध 1 वद्ध ( ३० कृ० ) १ बंधा हुआ | २ हथकड़ी बेड़ी से जकड़ा हुआ।३ गिरफ्तार किया हुआ पकड़ा हुआ। ४ कैदखाने में बंद | ५ पहिना हुआ। कमर में कसा हुआ। ६ रुका हुआ। रोका हुआ। दमन किया हुआ ७ बताया हुआ |८ जुदा हुआ मिला हुआ 18 रढ़ता से जमाया हुआ | - अंगुलित्र, - अंगुलित्राण, (वि०) दस्ताना पहिने हुए अंजलि ( वि० ) हाथ जोड़े हुए। -अनुराग ( वि० ) प्रेम में बँधा हुआ।-- अनुशय, ( वि० ) पश्चाताप करने वाला /- अशङ्क, (वि० ) शकी। सन्दिग्ध उत्सव, ( वि० ) छुट्टी मनाने वाला । - उद्यम, (चि० ) मिल कर सब करने वाला।- -कदय, (वि० ) तैयार । तत्परकोप, -मन्यु, रोष, (वि०) १ क्रोधी । रोपाम्वित | ( वि० ) १ कोपान्वित | २ क्रोध को दवा लेने चाला ! –चित, -मनस्, (बि० ) किसी ओर मन को हड़ता से लगाने वाला। -- जिह, (वि०) जीभ कीला हुआ दूष्टि, नेत्र, लोवन, ( वि० ) घूमने वाला ताकने वाला - नेपथ्य (वि० ) नाटकीय पोशाक पहिने हुए। -परिकर, ( वि० ) कमर कसे हुए तैयार। -प्रतिज्ञ, ( वि० ) १ वचन दिये हुए। प्रतिज्ञा किये हुए | २ हड़ता पूर्वक ( किसी बात का ) निश्चय किये हुए। ~मुष्टि (वि० ) १ कंजूस | लोभी मूठी बाँधे हुए 1-मूल, (वि० ) -
पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/५९१
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति