ब्रह्मन् अद्रि नाता स्त्री०) गोगवरा ना अरि गम (५०) अधिगमन (न०) वेन्नध्ययन | अम्भस् (२०) गोमूत्र अभ्यासः, (पु० ) वेदाध्ययन |-अयणः, अनः, (पु० ) नारायण का नामान्तर। -अरराय ( न० ) १ ब्रह्मविद्या अध्ययन करने का स्थान २ एक वन विशेष - अर्पणं, (न० ) १ ब्रह्मज्ञान का अर्पण १ ब्रह्म में अनुरागवान होना। ३ एक ताँत्रिक प्रयोग का नाम ४ श्राद्ध विशेष जिसमें पिण्डदान (स्वीर के पिराड ) नहीं होता। अर्ज ( न० ) एक प्रकार का अस्त्र जो मंत्र से अभिमंत्रित कर चलाया जाता था। यह अन-ध अस्त्र समन्त यस्त्रों में श्रेष्ठ माना जाता था। आत्मभूः, (पु० ) घोड़ा। ---आनन्दः ( पु० ) मा के स्वरूप के अनुभव का आनन्द । ब्रह्मज्ञान से उत्पन्न आत्मसन्तोष | --आरम्भः ( पु० ) बेदास्याम का आरम्भ- आवर्तः, (पु० ) सरस्वती और इरादती नदियों के बीच की भूमि का नाम विशेष यथा सरस्वती नोर्वदन्तरम् । संवनिर्मित देशाच्यते ॥ ▪ ( १८ ) --मनु -आसनं, (न० ) यह आसन विशेष जिस के अनुसार बैठ कर मय का ध्यान किया जाता है। - आहुतिः ( स्त्री० ) १ ब्रह्मपक्ष | २ वेवा ध्ययन-उज्कता ( स्त्री० ) वेदाध्ययन सम्बन्धी प्रसाद या उनके अध्ययन से विमुखता-उद्यं, ( न० ) वेदों की व्याख्या अथवा ब्रह्मविद्या सम्बन्धी विषयों पर विचार (उपदेशः, ( पु० ) मझविधा या वेदों को पढ़ाना । ऋषिः, ( = ब्रह्मर्षिः वा ब्रह्मऋषिः ) शाह्मण ऋषि | -ऋषिदेशः, (= ब्रह्मर्षिदेश:) (पु० ) प्रान्त विशेष [ यथा ★ " कुसे व मस्याण पंवा एप बझर्पिदेशे वैयर्तादिनन्तरः | ब्रह्मन् 1 ( पु० ) यज्ञ कराने वालो को दी जाने वा दक्षिणा कमन, (न०) १ ब्राह्मण का अनुष्ठेय कर्म २ यज्ञ में प्रधान चार यश कराने वालों में से एक कला ( स्त्री० ) दाक्षायणी का नामान्तर ।-कल्पः (१०) उतना समय जिने में एक मझा रहता है ~कारडं, ( न० ) वेद का वह भाग जिसमें ज्ञानकाण्ड है। -शष्टः, ( वि० ) शहतूत का पेड़ कूर्चय ( न०) रजस्वचा के स्पर्श या इसी प्रकार की अन्य अशुद्धि दूर करने के लिये एक व्रत विशेष । इसमें एक दिन निराहार रह कर दूसरे दिन पञ्चगव्य दिया जाता है, ( वि० ) स्तुति करने वाला ( पु० ) विष्णु का नामान्तर 1 -- कोशः, ( पु० ) समस्त वेदराशि | - गुप्तः, ( पु० ) एक उपोतिषी का नाम जो ईसा की २१८ ई० में उत्पन हुआ था।-गोलः (१०) झारद | - -प्रन्थि ( पु० ) शरीर की अन्य विशेष ग्रहः, --पिशाचः, - पुरुषः, - रतस्, ( न० ) -राक्षसः, ( पु० ) ब्रह्मराक्षस | ब्रह्मराक्षस होने का कारण याज्ञवरक्य स्मृति में यह लिखा है। “वरस्य घोषितं त् वये निर्जले दे भवति - - श्रोदनः (पु० ) ~ओोदनम् (न० ) यज्ञ में यज्ञ कराने वालों को दिया जाने वाला भोजन-कन्यका, (स्त्री०) सरस्वती -कररा, ॥ -घातकः, - घातिन्. ( पु० ) की इत्या करने वाला 1-घातिनी, ( स्खी० ) रजस्वला होने के दूसरे दिन की उस स्त्री की संज्ञा /- घोषः, ( पु० ) १ चेदाध्ययन | २ वेदपाड (~-प्रः, ( पु० ) ब्राह्मण की हत्या करने चाला। -वर्य, (न०) धर्म शास्त्रानुसार ब्रह्मचारी का व्रत। प्रथम आश्रम -चारिकं ( न० ) ब्रह्मचारी का जीवन । चारिन्. ( वि० ) वेदाध्ययन करने वाला २ ब्रह्मचारी ( पु० ) वह जो आजीवन यक्षपर्य धारण करने का सङ्कल्प किये हुए हो। ३ शिव जी ४द /-चारिणी, ( स्त्री० ) १ दुर्गा की उपाधि । २ सती श्री ।-- -जः, (पु० ) कार्तिकेय-जन्मन्, ( न० ) उपनयन संस्कार जारः (पु०) वाह्मणी का उपपति । २ इन्द्र | - जीविन, ( वि० ) १ श्रौतस्मातं कर्म करा कर itfaet चलाने वाला। -
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