भूग, भृङ्गम् ( १ 1 नं २ (२० ) अबक नोडल चिलचिल - इम्) अभीडा ( पु० ) धाम का पेड़- ध्यानमंदा ( स्त्री० ) यूथिका लता :-भावजी, (स्त्री०) मधुमविटयों का दल 1 ---जं, (न० ) १ अगर २ अव पणिका (स्त्री० ) छोटी इलायची। राजू, (पु० ) १ भारा २ क साड़ी का नाम - रिट-रीटि: (पु०) शिव जी के गय विरोष जो अड़े बदशक्त हैं। ---२ -रोजः, (पु०) एक जाति की बरंचा। 1 गारः (५० ) कारः ( पु० ) गारं ( न० द्वार ( न० )} गारगं ) ( म० ) रगन्लॉग | गारिका द्वारिका गारो 5 सुबईवट या सुवर्ण पात्र २ आकार विशेष का लोटा ३ राज्याभिषेक के समय काम में आने वाला घट स्वर्ण सोना २ लवङ्ग । ! "डिरिटि: गिरीदि > (पु० ) शिव जी के द्वारपाल ििट) "गेरिटि: "विड: ) ( स्त्री० ) किट्टी नामक कीड़ा | झरी “गिन ) ( 50 ) १ वटवृक्ष | २ शिव जी के एक भूमिः ( स्त्री० ) सेंबर | चकर | हिन् । गय का नाम ( श्री० ) वहर : ) भकः पड़ाया हुआ -अध्यापितः (पु० ) फीस देकर पढ़ने वाला छ । भृतिः ( खो० ) १ पालन पोषण २ भोजन 2 मज़दूरी भाड़ा ( वेतन पाने की शर्त पर ) नौकरी | पुंजी मूलवन -अध्यापनं, (न०) पढ़ाना, विशेषतया वेदों का पाने के लिये वेशन लेकर भुज् (पु० ) वेतन भोगी नौकर | भृत्य (वि० ) वह जिसका पालन पोषण किया जाय। -जनः (पु०) नौकर | सेवक । भर्तृ. ( ० ) घर का या परिवार का मालिक या बड़ा बूढ़ा |-- वर्गः, (न० ) अनुचर समुदाय :-वात्सल्यं, ( न० ) नौकरों के प्रति दया 1 भृत्यः (पु) नौकर चाकर २२ अमात्य . बज़ीर | भृत्या ( श्री० ) १ वाली ४ सेवा तक (वि०) भाड़े किया हुथा। अदा किया हुआ। चेतन चुकाया हुआ। अध्यापक (०) भोगी शिक्षक २ भोजन | ३ मजदूरी ( पु० ) शिव जी का गण जू (घा० आर०) [ भर्जते ] भूनना अकोरना। भृशं (अन्य) अधिकता से राहत से ( स्त्री० ) पौधा विशेष | बहुतायत से २ थक्सर प्राय ३ अच्छे ढंग से । भने प्रकार | सिटका भूत्रिम (वि० ) पालन पोषण किया हुआ। भृश (घा० परस्मै० ) [ भृश्यति ] नीचे गिरना । अधःपतन होना । भृश (वि०) मजबूत ताकतवर | बडवान् | २ साधन। अत्यधिक दुःखित --पीडित, ( वि० ) अत्यन्त सम्वत सहए. (वि० ) अस्मानन्दित । | भृष्ट (३० ० ) भुना हुआ त (व० १०) १ भरा हुआ पूरित १ पाला हुआ। पोषित | ३ सम्पन्न | ४ भाई पर लिया हुआ || भृष्टिः ( स० ) १ भूनना । अकोरना । ३ उजदा अदा किया हुआ | हुआ मान या उपयन | (सः (पु० ) भाई का नौकर अनं, (न० ) उबाल कर लावा-खील | अकोरा हुआ - भुना हुआ दाना । पालनपोषण करना २ भूमना ३ फलङ्कित करना। भर्त्सना करना । भृ ( धा० परस्मै० ) [ भृणाति ] वेतन भोगी शिक्षक द्वारा | मेकर ( पु० ) १ मैड़क २ भीर मनुष्य १२ वावज
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