( ८२० सवेरे के प्रकाश से प्रकाशित | ३ चमकीला स्पष्ट ४ बसा हुआ। व्युटं (२०) १ तड़का भार प्रभातकाल । २ दिवस दिन ३ फल 4 सदका भोर २ सबुद्धि ३ प्रशंसा ४ फल परियाम 1 1 ब्यूट ( १० कृ० ) १ फैला हुआ वृद्धि को प्राप्त चौड़ा २ । संसक्त ३ क्रम में रखा हुआ सिलसिलेवार रक्षा हुआ। ४ अस्तव्यस्त | गड्यङ् । १ विवाहित । -कङ्कट (वि० ) कवचधारी | जिरहवक्ण्डर पहिने हुए। व्यूत ( वि० ) श्रोतप्रोत | सिला हुआ । सुना हुआ । ब्युतिः (स्त्री० ) १ सिलाई बुनावट | २ बुनाई की { 1 उजरव | व्युद्धिः (श्री०) 1 व्यूहः (५०) युद्ध करने के लिये जाने वाली अथवा युद्ध के समय की सेना की स्थापना। बलविन्यास सेना का विन्यास २ सेना २ समूह जमघट ४ अंश भाग अन्तर्गत भाग २ शरीर १६ ठाठ बनावट ७ तर्क -- - पाणिः, (स्त्री० ) सेना का पिछला भाग-भंगः - भेदः, (१०) | सेना के व्यूह को तोड़ देना। व्यूहनं ( न० ) पुद्ध के समय सेना की भिन्न भिन्न स्थानों में नियुक्त करने की किया २ शरीर के प्रयों की बनावट व्यृद्धिः ( श्री० ) असमृद्धि | अभाग्य । दुर्भाग्य | बदकिस्मती | न्ये (धा० उभ० ) [ व्ययति-व्ययते, ऊत ] १ आच्छादन करना। ऊपर से डौंकना । २ सीना। व्यांकारः (पु० ) सुहार व्योमन् ( म० ) १ श्राफाश | चासमान २ जल २ सूर्य का मन्दिर ४ भोटर अवरक ।-उदकं, ( न० ) वृष्टिजल घोस। -केशः -केशिन, ( पु० ) शिव जी | गङ्गा (श्री० ) आकाश गंगा (बारिन्, (पु० ) : देवता २ पक्षी | ३ सन्त महात्मा ४ बाय । २ नत्र 1 -धूमः, ( 30 ) बादल --नाशिका (स्त्री०) मत, व्रतः सीतर बढेर। मञ्जरं, मण्डलं (न०) पताका| झंडा - मुद्गरः (पु०) पवन का फोका। दूका। - यानं ( न० ) आकाशयान | देवयान | सद् ( पु० ) देवसा २ गन्धर्व | ३ आत्मा । -स्थली (स्त्री० ) पृथिवी/स्पृश, ( वि० ) बहुत ऊँचा। ) - व्रज (घा०प० ) [बजति ] जाना। गमन करना। टहलना आगे बढ़ना २ पास जाना। मुलाकात करने को जाना। ३ प्रस्थान करना। रवाना होना। ४ गुज़र जाना। ब्रजनं (न० ) १ भ्रमण | यात्रा | २ निर्वासन। व्रज्या (बी०) १ घूमना फिरना। पर्यटन | २ आक्रमण | चढ़ाई। ३ गल्ला ( भेड़ों का ! ) कुंड । गिरोह | समूद। समुदाय हे ४ थियेटर रंगभूमि | 1 भाव्यशाला । त्रा (धा०प० ) [ व्रणति ] शब्द करना । बजाना । [उ० मायतिवणयते ] घायल करना। चोटिल करना । मयं ( म० ) } १ धाव | व्रत | चोट | खरोंच | णः ( पु० ) ) २ बलतोड़ फोड़ ( पु० ) बोल नामक गन्धद्रय्य गूगल कृत ( वि० ) घायल किया हुआ या घायल। ( पु० ) भिलावे का पेड़ - विरोपा, ( वि० ) धाव पूरने वाला।-शोधनं, (न०) घाव की मलहम पट्टी- हः (पु० ) रंड रेंजी का रूख । प्रणित ( वि० ) घायल । चोटिल व्रतः ( पु० ) ) प्रतिज्ञा | ३ आराधना। भक्ति | ४ मतं ( न० ) ) १ किसी बात का पक्का सङ्कल्प | २ पुरुष के साधन उपवासादि नियम विशेष २ व्यवस्था विधि निर्दिष्ट अनुष्ठान पद्धति । ६ यज्ञ ७ अनुष्ठान कर्म कार्य-वर्या (स्त्री०) किसी प्रकार का व्रत रखने या करने का काम पारगां ( न० ) -पारणा (स्त्री० ) किसी व्रत की समाप्ति । २ प्रतिज्ञा-भङ्ग ।~-~लीपनं, ( न० ) किसी व्रत को भंग करना। -जैकल्यं, ( न० ) किसी धार्मिक व्रत की अपूर्णता /- स्नातकः, (पु० ) तीन प्रकार के ब्रह्मचारियों में
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