पु ० ( पु० ) जनन । पुत्रजनन । डश (वि० ) [ सी०-पोडशी ) सोलहवों । डशन्, (वि०) सोलह । अंशु (पु०) शुक्रग्रह। --प्रङ्गः, ( पु० ) एक प्रकार का सुगन्धव्य - अङ्गुलक.. ( वि० ) सोलह अंगुल चौड़ा ः (०) शुक्रग्रह। - छावर्तः, (पु० ) शङ्ख ! - उपचार, ( पु० बहुव० ) पूजन के पूर्व यंग जो सोलह माने गये हैं। [ आवाहन । आसन । अध्येपाय | आचमन मधुपर्क। स्नान। वस्त्राभरण। यज्ञोपवीत । गन्ध (चन्दन ) । पुष्प | धूप | दीप | नैवेद्य | ताम्बूल परिक्रमा चंदना | यानं] स्वातं; पादरममाची मधुपर्काचरा | वहनाभरणामि च ॥ दीपनवेदर बंदनं तथा ॥ ] -कला, ( पु० ) चन्द्रमा की सोलह कला | [ चन्द्रमा की सोलह कला ये हैं :- अमृता यानदा] पूषा तुटपुट्टोरतिवृतिः | का कान्तिय सीमीतिरेव च । अदा तथा पूर्वावृता पोडश व फखा: [1] -भुजा, (स्त्री०) दुर्गा की एक मूर्ति। मातृका - स संस्कृत अथवा नागरी वर्णमाला का बत्तीसवाँ व्यञ्जन | इसका उच्चारणस्थान दन्त है । अतएव यह दन्त्य से कहा जाता है। ( अभ्यथा० ) यह संज्ञात्मक शब्दों के पहले सम् सम, तुल्य, सटश सह के अर्थ में लगाया जाता है। [ जैसे सपुत्र, सभा, सतृष्य ] ( पु० ) १ सर्प | सौंप २ हवा पवन ३ पक्षी | ४ पढ्ज । २ शिव । ६ विष्णु पः ( पु० ) कंकाल पंजर । त् (श्री०) युद्ध संग्राम। लड़ाई-घर (पु०) राजा महाराज | श्त (व० कृ०) १ बद्ध | बँधा हुआ। जकड़ा हुआ ! २ पकड़ में रखा हुआ। दबाव में रखा हुआ।३ सयत ( स्त्री० ) एक प्रकार की देवियाँ जो सोलह है। [ उनके नाम ये हैं गौरी पद्मा। शची मेघा सावित्री विजया। जया | देवसेना स्वाहा। शान्ति पुष्टि धृति । तुष्टि और आत्मदेवता । ] I 1 पोडशधा (अव्यया० ) १६ प्रकार का । श्रोडशिक (वि०) [ स्त्री० – पांडशिकी, ]१६ भागों का। सोलह गुना। पोडशिन् (पु० ) अग्निष्टोम यज्ञ का विधान विशेष! ष्टि स्वधा मातरः घोढा (अभ्य) छः प्रकार से मुखः, ( १० ) छः मुखों वाला। कार्तिकेय । ( धा० प० ) [ टीवति, ष्टीव्यति, प्ठ्यूत ] थूकना। ठीवनं ठेवनं } (1०) थूकने की क्रिया | २ थूक | खखार | ध्ठ्य त ( य० कृ० ) थूका हुआ । उगला हुआ । कू ) (धा० ऋ० ) [ ध्वकते, लस्कते ] ध्वस्के) जाना चलना । रोका हुआ। दमन किया हुआ काबू में लाया हुआ वशीभूत ४ बंद किया हुआ कैद किया हुआ। २ क्रमवृद्ध व्यवस्थित नियमबद्ध कायदे का पाबंद | ६ उद्यत | तैयार | सन्नद । ७ इन्द्रियजीत । निग्रही। म उचित सीमा के भीतर रोका हुआ।-अंजलि, (वि०) हाथ जोड़े हुए। -आत्मन् (वि० ) श्रात्म-निग्रही । -श्राहार, ( दि० ) जो आहार करने में संयम रखे - उपस्कर, (वि० ) वह जिसका घर सुव्यवस्थित हो।-चेतस्, मनस्, (वि०) मन को संयम में रखने वाला। -प्राण, (वि० ) वह जिसकी स्वाँस रुकी हो । चाबू, (वि० ) खामोश | जिसने अपनी वाणी को वश में कर रखा है। - -
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