मधिक सन्धिक ( CE ) में वह विकार जो दो अक्षरों के पास पास आने के संविला ) ( श्री० ) दीवाल में किया हुआ कारण उनके मेल से हुआ यता है । १० अव | २३ शराब t काश दो वस्तुओं के बीच की खाली जगह 19 अवकाश विश्राम १२ सुअवसर १३ एक युग की समाप्ति बीच का समय और दूसरे युग के आरम्भ के थुग-सन्धि १४ नाटक में किसी प्रधान प्रयोजन साधक कधशों का किली एक मध्यवर्ती प्रयोजन के साथ होने वाला सम्बन्ध [ ऐसी सन्धियां + प्रकार की होती हैं यथा- मुखसन्धि, प्रतिमुख सन्धि, गर्भ-सन्धि, प्रवमर्श या विमर्श सन्धि और निर्वहण सन्धि ] १२ श्री की जननेन्द्रिय | भग। - अतरं, (न० ) दो स्वरों का योग संयुक्त स्वरवद्रय ( जिनका उच्चारण सम्मिलित किया जाता है। शीर: 1 पु० ) सेंध लगाने वाला चोर जं. ( न० ) शराय । -जीवकः, (५०) इलाज कूटना:-दूपां. ( न० ) सन्धि को भङ्ग करने की क्रिया - - वंधनं, ( न० ) शिरा । नाही नस । -भङ्गः, (पु० ) - मुकिः, ( स्त्री० ) वैयक के मतानुसार हाथ या पैर श्रादि के किसी का टूटना या स्थानच्युत होना :-विग्रह: पु० द्विवचन ) शान्ति और युद्ध - विचक्षणः, ( पु० ) सन्धि करने के कार्य में निपुण (~-वेला, (खी०) सन्ध्याकाल | सायंकाल | शाम /-हारकः, (पु० ) घर में सेंध या नक्रय लगाने वाला। " संधिक सन्धिकः । ( पु० ) एक प्रकार का ज्वर । संधिका सन्धिका } ( स्त्री० } शराब खींचने की किया । संधित ) ( वि० ) १ संयुक्त जुड़ा हुआ | २ सन्धित ) बँधा हुआ कसा हुआ। ३ मेल मिलाप किये हुए| मैत्री स्थापित किये हुए | ४ जना हुआ बैठाया हुआ। २ मिश्रित किया हुआ | ६ अचार डाला हुआ। संघितं ( न० ) १ आचार सुरख्या २शराब | सन्धितं ( ० > मदिरा | ३उठी हुई गाय गाभिन संधिनी ( श्री० ) होने के लिये विकल गाय सन्धिनी ( श्री० गर्मानी हुई गौ : ४ देवक्त दुही सन्जय संधुगां : (म०) १ जलाना २ उद्दीपन करने की क्रिया संधुलित सन्धुति मातर हुआ चालना दाना | ६० ० ) हुआ भड़काया हुआ | उत्तेजित किया हुधा संचय ) ( वि० मिलाने को जोड़ने को सन्धेय ) मित्राने या मना लेने के योग्य | ३ सन्धि करने के योग्य जिसके माथ सन्धि की जासके। निशाना लगाने योग्य संध्या ६०) मे सन्धि २ जोड़ सन्ध्या ) विभाग | ३ प्रातः या का समय ४ तड़का | मोर सन्ध्या ग्राम ६ युग- सन्धि प्रानः मया और सायं सम्ध्योपासन कृत्य इयगर | ३ सीमा | हद | १० ध्यान | विचार : १६ पुष्प विशेष १२ नदी का नाम । १३ वासनं, ( ग० ) १ सन्ध्याकालीन मेघ जिनमें सुनहली श्रामा होती है। २ गेरू लाल खढ़िया- काजः, ( पु० ) शाम-नादिन ( पु० ) तिजी दुष्पी ( खां की जाति का फूल । २ जायफल । -वजः, ( पु० ) सक्षम। --रामः५ ( पु० ) इंगुर | सेंदूर 1~-रामः, (पु० ) ब्रह्माजी वन्दनं, (न० ) आर्यों की प्रातः सायं की विशिष्ट उपालना। 1 4 बसा हुआ। ३ ढीला सन (व० ऋ० ) १ उपविष्ट। बैठा हुआ लेग हुआ। २ उदास रामग्रीन हुआ ४ नियंल बरबाद किया हुआ | नाश किया हुआ ६ विनष्ट ७ गतिहीन स्थिर घुसा हुआ ६ समीप । नज़दीक मोर | २ ( 1 सनं ( न० ) थोड़ा थोड़े परिमाण में सन्नः ( पु० ) पियाल वृद्ध सन्नक (दि०) हरत्र । यौना : वकार ★ पियाल वृक्ष | +4 (5) सन्नतर (वि० ) मन्द दवा हुआ (स्वर जैसे ) सं० श० कौ ११२
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