( १३ ) वेदास्तावद्यज्ञकर्मप्रवृत्ता यज्ञाः प्रोक्तास्ते तु कालाश्रयेण । शास्त्रादस्मात् कालबोधो यतः स्याद्वेदाङ्गत्वं ज्योतिषस्योत्तमस्मात्”* ॥ वेद शास्त्र हम को यज्ञ करने के लिये प्रवृत करता है। सुन्दर समय में किया हुआ यज्ञादि शुभ कार्य सफल और दूषित काल में विहित कर्म असफल होता है। शुभाशुभ समय का ज्ञान ज्योतिष शास्त्र से ही होता है। इस लिये षडङ्ग में इसकी गणना भास्कराचार्य जी ने की है। इन शिक्षादि ६ अङ्गों में ज्योतिष शास्त्र मूर्धन्य है, ऐसा भी ग्रन्थकार ने कहा है। क्योंकि समस्त अङ्गों से परिपूर्ण व्यक्ति बिना आँख के कुछ भी नहीं कर सकता। इस लिये षडङ्गों में ज्योतिष शास्त्र श्रेष्ठ है। उनका वाक्य ग्रन्थ में निम्न है ‘‘वेद चक्षुः किलेदं स्मृतं ज्यौतिषं मुख्यता चाऽङ्गमध्येऽस्य तेनोच्यते । संयुतोऽपीतरैः कर्णनासादिभिश्चक्षुषाऽङ्गन हीनो न किञ्चित्करः?’ ॥* · भास्कराचार्य जी के इस कथन के पूर्व में ही आचार्य लगध ने अन्य वेदाङ्गों से इसकी श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया है। जैसे मोरों की चोटी व सपों की मणि मस्तक के ऊपर होती है उसी प्रकार षडङ्गों में ज्योतिष शास्त्र भी सब से मूर्धन्य है। कहा भी है ‘यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा। त;द्वेदाङ्गशास्त्राणां ज्योतिषं मूध्नि वर्तते ॥” * लगध ऋषि के इस वचन से भी सिद्ध होता है कि वेदाङ्गों में सब से उत्तम ज्योतिष शास्त्र है। . इस के अनन्तर आकांक्षा होती है कि ज्योतिष शास्त्र किसे कहते हैं। इसका उत्तर निम्न प्रकार से है ज्योतिः अर्थात् ग्रहनक्षत्रादिकों का प्रतिपादन जिसमें हो वह ज्योतिष कहलाता है। अथवा जिससे ग्रह नक्षत्रादि विज्ञान तथा संसार के शुभाशुभ का ज्ञान होता है: उसे ज्योतिष कहते हैं। १. सि. शि. ग्र, ग, का. मा. ९ श्लो.। २. सि. शि. ग्र. ग. का भा, ११ श्लोe । ३. मु चि, १ अ. २ श्लो. पीयू. टी. ।
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