पृष्ठम्:सिद्धान्तशिरोमणिः.djvu/27

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

( १९ ) १. इत्यादिना गोले सम्यगभिहिता। २. “अस्योपपत्तिगोले कथितैव । ३. तात्कालिकीकरणकारणता गोले कथिता। . इन वाक्यों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि पहिले गोलाध्याय के भाष्य का ही निर्माण हुआ है। • बीजगणित के कुट्टक प्रकरण के ‘कल्प्याऽथ शुद्धिविंकलावशेषम्' इस श्लोक की विवृति में आचार्य भास्कर ने कहा है कि इसका उदाहरण प्रश्नाध्याय में कहा हं। इससे भी सिद्ध होता हैं कि प्रश्नाध्याय के अनन्तर बीज पुस्तक का निर्माण उन्होंने किया है। इस समय इनका एक करण ग्रन्थ करणकुतूहल' नाम से उपलब्ध है। गोलाध्याय के यन्त्राध्याय में नाडीवलय यन्त्र के प्रतिपादन में इन्होंने कहा है कि 'स चाऽङ्कनप्रकारः सर्वतोभद्रयन्त्रे यथा मया पठितः’* मैने वह अङ्कन प्रकार सर्वतोभद्र यन्त्र में जैसे पठित किया है, उसी रीति से यहाँ समझना चाहिए। इससे सिद्ध होता है कि इनका ‘सर्वतोभद्र यन्त्र' नामक कोई ग्रन्थ था। किन्तु यह ग्रन्थ आज तक किसी के दृष्टिगोचर नहीं हुआ है। इनके ‘भास्कर व्यवहार' तथा ‘विवाह पटल' नामक ग्रन्थों का उल्लेख अधिक स्थानों में प्राप्त होता है। । १. रत्नमाला की टीका करने वाले 'माधव’ ने शक ११८५ में भास्कर व्यवहार का उल्लेख किया है। - २. रामाचार्यकृत 'विवाह पटल' की टीका में भास्कराचार्य जी का विवाह सम्बन्धी श्लोक मिलता है। - ܙ ܸ ३. शाङ्गीय विवाह पटल में भास्कर कृत विवाह पटल' का उल्लेख प्राप्त होता है। इसलिए उत्त कारणों से निश्चय करने में कोई आपत्ति न होगी कि इनका कोई मुहूर्त सम्बन्धी ग्रन्थ अवश्य ही था। . . . - आचार्य भास्कर द्वारा निर्मित 'बीजोपनयनम्' नामक पुस्तक मुद्रित उपलब्ध होती है। ग्रहों में अन्तर दूर करने के लिए ही आचार्य ने बीज संस्कार की कल्पना की, ऐसा उनके कथन से ही स्पष्ट होता है। जैसे-‘इदानीं ग्रहाणां बीजकर्माह° अब मैं ग्रहों के बीज कर्म को कहता हूँ। इस उक्ति से स्पष्ट होता है कि श्री भास्कराचार्य जी को बीज कर्म अभीष्ट था। १. सि० शि० १३१ पृ० । २. सि० शि० १३२ पृ० । ३. सि. शि. १५० पृ. ४. बी० ग० कु० ३७ श्लो० ॥ ५. सि० शि० ४४१ ॥ ८. भा० ज्यो० ३५१ । ७. सि० शि० go - AV