पृष्ठम्:स्फुटचन्द्राप्तिः.djvu/४७

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43 35 . 36 . 37 . 38. 39 . 40 . 41. 42 . 43 . 44 . 45 . 1. 47 . 46. 48 . 49. 50. 51. 52 . 53 . 7. 54 . 55 . 56. 57 . शैलाः पुष्पितनगा लोलो जलधि: किल धनी नरोऽङ्गनावान्’ सर्वविद व्यास: कवि: स्तेनेन द्रव्शानाशा: सूर्यो बलमाकाशे मनुष्यो मधुरात्मा गान नेष्ट विपत्तौ पर्वचन्द्रोऽग्रिस्त: भोगेच्छालं प्रियेऽर्थे मागधी गीतरसः लीनो नागो5 निकुञ्जे गामुक्षा न विरेजे" रवौ हरे: ’ सन्निधिः वर्णान् वागनुरुन्धे भावे स्मरोऽङ्गनानां स्यात् गायत्री नास्तिकैनिन्द्या धनं चोरो हरेन्नित्यम् धर्म धिगनपायस्य धीगतिर्भद्ररूपेयम् क्षीराब्धौ विभूः यमोऽयमन्तिके गौरी स्थाणोदररा: A. नला: A. सूर्य A. लोनोऽनङ्गो B. हारः 4 5 6 7 7 8 9 10 10 10 11 0 2. 4. 6. 8. 19 3 17 15 29 1 4 28 12 26 10 24 7 20 3 16 28 10 22 4 16 28 38 A. वागनिरुन्धे 20 14 20 33 10 26 37 39 30 28 34 25 2 26 39 46 49 A. -ङ्गना वा D. मधुराशः B. D. विरुजेत् 51 57 35 33 9 47 17 41 34 35 53 42 54 44 13 9 59 39 26 51 23