पृष्ठम्:स्फुटचन्द्राप्तिः.djvu/५३

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54 177 . 3. 178 . 179 . 180. 181 182 . 183 184. 185. 186 . 187. 188. 189. 190. 191. 192. 193 . 194 . 195 . 196. 197. शाशलक्ष्माधिकाँशुः सुखदं नवनीतम् घन्वन्तरिर्जयति वागीशो वारनाथ : फलज्ञानेच्छा " कथम् धान्ये न कस्यानन्दः दगयमनिन्द्या प्राज्ञौ विष्णरुद्रौ10 चारार्थी महाराजः 8 सोमोऽनङ्गारिव्याधः' 9 मत्यर्थो धन्वा शारधी: शशी कुमुदिनीनम्यः 10 रुद्रो धीगम्यः प्राज्ञेः स्यात6 10 पद्माक्षी शोभनास्या ईशप्रियो7 विनायकः 11 विद्योज्ज्वला तार्किकस्य ' 11 धनाप्ताभूदद्रिकन्या 11 मगों" गोनाथः पूज्यः हरिः सेव्यो धरया * पौलस्त्यो भयङ्करः 1. B. D. सत्राजिन्न विनीतः R B. धान्यै: ; D. घन्यै: S 5. D. मुकुळाभा मुरळी 7. B. रङ्गप्रियो 9. D. धनुषा भेदो रिपोः स्यात् 11. B. स्वगों 6 7 0 1 19 18 17 15 28 12 2:5 21 4 16 28 10 22 17 29 53 26 45 0 57 30 49 51 39 12 34 46 51 54 56 17 2. D. पयस्यनिच्छा 41 55 8. B. ज्वलस्तु 10. D. प्रज्ञावान् मुरारिः 12. B. धरायाम् 27 49 34 32 19 55 26 57 15 22 50 14 38 51 34 28 4. B. -रिव्यधि: ; D. सुमनोङ्गरू *** 6. D. प्रारब्धं लङ्केन्द्रनाट्यम् 31