पृष्ठम्:स्फुटचन्द्राप्तिः.djvu/५४

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

198 . 7. 9. 199 : 200. 2011. 202. 203. 204. 205. 206. 207. 2008 . 209, 210. 211. 212. 213. 214. 215 . 216. 217 . 218. 219. स्थाने जयो वरिष्ठ:1 मानघनः सानुग * तरुण: को न रागी गौरी सलीला न वा करीभव्योऽसौ युवा तमस्विनीयं निशा रत्नासनमुपेमः हेम सम्पद्धारिणाम् ' जडी विडम्बयति सलिलाशा सम्प्रति गुरुकाय' प्रयास पाण्डवा: प्राप्तरथा: शिवधीरनापदे6 चापी वीरो द्विरदे ’ शाश्वन्मौनीजनोऽन्ध : मूल फलाढयश्राद्ध. तमालामो घनो नित्यम् प्रभोधिगच्छकनकम् ' वैश्वानरं नानुयायात् रागादिवैराग्यं पथ्यम् श्रीरामनाम रम्याग्रयम10 प्रज्ञावान पार्थः 1. D. पवेन्दुः पर्वरात्रि 3. D. करभः पाथेयवान् 5. D. काव्ये D. तपस्वी प्रवरो हि D. प्रवाळऽल्पासिकनकम् RS 5 10 1 0 11 11 2. 4. 8 11 6. Bhaga 24 20 17 15 - 29 13 27 12 26 10 24 21 4 17 0 12 25 B.D. धारिण: 18 15 37 B. घीरा नापदी 14 17 34 53 24 29 24 32 43 39 20 48 D. मानाधिनाथो नागः 14 8. B. शृङ्गीरङ्गोपरुद्धम् 10. D. श्रीरामो नामरकल्प: 26 23 21 56 58 38 37 23 31 45 16 45 35 56 42 44 32 22