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स्वाराज्य सिद्धिः


जैसे मैं अज्ञानी हूं, चीणबल हूं, मनुष्य हूं, दरिद्री हूं । ।

हाय ! यह मेरे पुत्र कैसे जीयेंगे ?'इत्यादि ।४९ ॥

'परत्रावभासः अध्यासः’ यह श्रध्यास के लक्षण का

संक्ष शंका -शारीरिक भाष्य में भगवान् शंकराचार्य ने तो ( स्मृतिरूपः परत्र पूर्व छष्टावभास:) यह अंध्यास लक्षण का संक्षेप दिखाया है ।

माधान - यह तुम्हारा कहना सत्यं है, परन्तु भाष्य लक्षण में स्मृतिरूप और पूर्व दृष्ट ये दोनों पद उस अध्यास लक्षण के उपपादन के लिये हैं। वहां कल्पित रजतादि पदार्थ अवभास शत्र्द का अर्थ द्वे श्रौर उस अवभास के प्रयोग्य श्रधिकरण परत्र शब्द का अर्थ है । प्रारोप्य के अत्यन्ताभावत्वता ही अधिकरण की श्रयोग्यता है और यहां पद्य में तो (श्रनधिगत वस्तुनि श्रतम्मिान प्रतीचि ) यह परत्र पद का अर्थ है और तद्बुद्धि य? अवभाम पद का अर्थ है । (अतस्मिस्तद्बुद्धिर ध्यानः) यः शानाध्यास का लक्षण है, क्योंकि अवभास पद् युत्पत्ति के भेद से अर्थाध्यास और ज्ञानाध्यास परक है । इसलिये किसी भकार का यहां विरोध आपादन नहीं हो सकता ।

(अनधिगत वस्तुनि ) सामान्यतया भासमान और विशेष तया न भामान (श्रतस्मिन्) श्रारोप्य से भिन्न पदार्थ में (तद् बुद्धि:) जो श्रारोप्य बुद्धि है (अध्यासः) वह श्रध्यास है। ()ि यह हि शब्द भाष्यादिकों की प्रसिद्धि का ज्ञापक ६ ॥ श्रब अध्यास के लक्षण की भूमी को दिखलाते हैं (अध्यासः) यह अध्यास (प्रतीचि स्फुटं प्रतीयते) अहं अहं इस प्रकार