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स्वाराज्य सिद्धिः

मनमें मिथ्या है इसलिये सत्य वस्तुके ज्ञान जन्य संस्कारों काभी अभाव है । श्रात्मा निर्विशेप है इसलिये सामान्य रूपसे अधि gान का ज्ञान श्रौर विशेप रूपसे उसका श्रज्ञान दोनों असंभव है| प्रमाता तथा नेत्रादि प्रमाण स्वयं ही अध्यास रूप हैं, इसलिये प्रमाता प्रमाण गत दोषों का भी अभाव है । इस प्रकार श्रध्यास की सामग्री का अभाव होने से अध्यास भी असंभव है, इस प्रकार की शंकाको ले करके श्रब समाधान करते हैं

समाधान-यहा पूव पूव श्रध्यस्त प्रपच क ज्ञान जन्य संस्कार विद्यमान हैं, क्योंकि सत्य वस्तुके ज्ञानजन्य संस्कारों का नियम नहीं है। वस्तुके ज्ञानजन्य संस्कार चाहिये वस्तु सत्यहो वा मिथ्या हो इस कथा का यहां श्राद्र नहीं है । इन्द्रजालिक प्रद र्शित मिथ्या खजूर के वृक्षमें छुहारे के वृक्ष का भ्रम होजाता है, विरक्त पुरुष को सीपी में चांदी का अध्यास होजाता है, इसलिये प्रमाता गत दोष भी अध्यास का कारण नहीं । शुद्ध नेत्र वालों को भी प्राकाश में नीलिमा आदिकों का अध्यास होता है, अतः प्रमाण गत दोष भी अध्यास का नियत कारण नहीं है। मिस्री में कटता का अध्यास देखा गया है अत: प्रमेयगत दोष भी अध्यास का कारण नहीं है। परमार्थ से श्राकाश में नीलिमा श्रादिक अध्यास में सर्व दोषों का अभाव है, तैसे ही यहां प्रकृत में भी जानो । श्रात्मा में सामान्य विशेप भात्र भी मायिक है इसलिये सत्रूप सामान्यरूप का ज्ञान श्रौर सचिदानन्द अखंड नित्य मुक्त श्रसंग आदि विशेप रूप का श्रज्ञान तो बन सकता है, इसलिये विद्वानों को अध्यास में श्रसंभावना नहीं हो सकती । इसी प्रकार से श्रागे समाधान दिखलाया जाता है

श्लोक का अर्थ यह है-(भास्तमोवत्) प्रकाश अन्धकारके

सदृश (विषयि विषयोः प्रत्यकूपराचोः) ज्ञान ज्ञेय का आंतर