प्रकरण १ श्लो० १ [ ३ । अध्यारोपाख्यं प्रथमं प्रकरणम् ।। नेिष्किचन विरक्त जिज्ञासु जनों के लिये इस स्वाराज्य सिद्धि ग्रंथ की रचना हुई है। स्वाराज्य पद का अर्थ चक्रवर्तित्व है। इस चक्र वर्तित्व रूप स्वतंत्र पद की प्राप्ति के लिये, ग्रन्थ की देश देशान्तरों में प्रवृत्ति के लिये और आगे शिष्य पर शिष्य शिक्षा के लिये ग्रंथ कर्ता आशीर्वाद रूप मंगल को करता है। गंगा पूर प्रचलित जटास्रस्त भोगीन्द्र भीता मालिंगन्तीमचलतनयां सस्मितं वीक्षमाणः । लीलापांगेः प्रणत जनतां नंदयंश्चन्द्रमोलि महध्वांतं हरतु परमानंदमूर्तिः शिवो नः ॥१॥ श्रीगंगा के प्रवाह से कंपित जटा में से नीचे गिरे हुए सपरराज से भयभीत होकर, आलिंगन करती हुई तथा प्रणाम करने वाले को स्वाभाविक कृपाकटाक्ष से प्रसन्न करने वाली पार्वती को मंद हास्यपूर्वक देखने वाले, जिनके मस्तक में चन्द्र है तथा जो परमानन्द स्वरूप हैं वह शिव हमलोगों के श्रज्ञान अंधकार को दूर करें ॥ १ ॥ सरलान्वय पद्य काशिका भाषा टीका । .. ( शिवः) महादेव (न:) 'हम लोगों के (मोह ध्वान्तं ) अज्ञान रूप ऋधकार को (हरतु) नाश करे। कैसा ब्रह्. श्रिवः
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