पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/१४१

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प्रकरणं १ श्लो० ३

स्वाराज्य सिद्धिः}}

प्रकरण २ श्लो० १५ [ १३३ च्छत्रमूले स्फुरन् सः । इत्युक्तः पु'विशेषं सपदि

परिचिनोत्येष राजेति सर्व मुक्त्वैकं येन पश्य

न्नमु मपर विधं सेष राजेति वेति ॥१५॥

इस समाज में राजा कौन है ? ऐसे प्रश्न का उत्तर देते हैं कि मस्त हाथी की पीठ पर मोतीमय चातुष्कोण श्रबारी में चन्द्र के समान स्वच्छ शोभायमान छत्र के नाच बैठा हुश्रा राजा हैं । इस प्रकार कह हुए म सब विशषणों को छोड़कर एक पुरुष विशेष में ही राजा तुरन्त जाना जाता है और इसीसे अन्य लक्षणों से युक्त भी वह यह राजा ह एसा श्रन्यकाल म भा जाना जाता है।॥१५॥ ( अस्मिन् समाजे नरपतिः कः इति पृष्ट ) इस समाज में राजा कौन है, इस प्रकार पूछने पर उत्तरदाता कहता है (यः मत्त मातंग पृष्ठ ) जो मस्तं हाथी की पृष्ठ पर (मुक्ता जलान्तरोले) मुक्तामय चार कोणों वाली गज पृष्ठावलंबी अम्बारी के बीच में (शशि धवल लसत् छत्रमूले स्फुरन्) चन्द्रमा के सदृश स्वच्छ और शोभायमान छत्र के नीचे असाधारण वरुन्न, भूषण, मुकुट आदिकों से प्रकाशमान जो व्यक्ति है (सः) सो राजा है। ( इत्युक्तः) इस प्रकार उत्तर पाकर प्रश्न कर्ता (सर्वे मुक्त्वा ) उक्त सभी विशेषणों को त्यागकर (एकं पु' विशेषम् ) एक पुरुष विशेष को (एष राजा इति सपदि परिचिनोति ) यह राजा है इस प्रकार शीघ्र ही जान लेता है। अर्थात् सब विशेषणों से रहित