१० ] स्वाराज्य सिद्धि कम को मुक्ति की साधनता के उपपाद्क श्रुति स्मृति रूप शास्त्र का प्रत्यक्ष दर्शन है। इसलिये सुख भोग के प्राप्त करने वाले पुण्य कर्म से बंध के नाश होजाने पर पूर्व उक्त जगत् का मिथ्यात्व सिद्धि नहीं हो सकतां । इस शंका का श्रागे समाधान किया जाता है सत्यं भावं न वितिव्र्यपनुदति यतः कर्मनाश्यो घटादि र्मिथ्याभूतं च कर्म चक्षपयति न तथा वितिघात्यं यतस्तत् । इत्थं सिद्धे विभागे श्रुति शिखरगिरा वितिघात्यः प्रतीतो बन्धो मिथ्येति सिद्धे न तदपहृतये कर्मजातं समर्थम् ॥६॥ घटादि सत्यपदार्थ को ज्ञान निवृत्त नहीं करता तैसे श्रारोपित मिथ्यापदार्थ को कर्म निवृत्त नहीं करता, वह तो आविष्टान के ज्ञान से ही नष्ट होता है । ऐसा भेद होने से वेदान्तवाक्यों में निश्चित किया हैं कि बंधून मिथ्या है इससेस कर्म बंधन को नाश करने में असमर्थ है ॥६॥ लोक में (घटादिः) घटपटादि भाव पदार्थ (कर्मनाश्य:) प्रहार श्रादिक क्रिया करके नाश होजाता है। (यतः) जिस कारण से ( वित्तिः ) वस्तु का यथार्थ ज्ञान (सत्यम् ) श्रनारोपित (भावम् ) भाव पदार्थ को (न' व्यपनुदति ) नाश नहीं करता (तथा). तैसे ही ( कर्म ) क्रिया भी (मिथ्याभूतम्) आरोपित. शुक्ति रजत आदि पदार्थ को (न
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