• १७४ ] • • • • • • • • • • • • - - - - - स्वाराज्य सिद्वि . - • • • • • • होने पर भी अध्यासाभेदान्वय पक्ष संभव नहीं, क्योंकि (अनित्य फलता दोषात् च ) ध्यान भी मानसी क्रिया ही है, इस कारण वह. श्रुति अनित्य फलबती होगी, क्योंकि क्रिया से साध्य फल अनित्य ही देखा है । ( बिरुद्धयोस्तादात्म्यं न ) और तत्त्वमसि महा वाक्य में तीमरा विशेषण विषयक सामानाधि करण्य रूप अभेदान्वय संभव नहीं, क्योंकि विरुद्ध स्वभाव वाले तत्त्वं पदार्थो का विशेष्य विशेपण भाव असंभव होने से तादात्म्यभी असंभव है । (इति बलात वस्तु ऐक्य पक्षस्थितिः) उक्त रीति से तीनों पक्ष असंभव हैं, इसलिये एक वस्तु विषयक सामानाधिकरण्य रूप चौथे पक्ष की स्थिति तत्त्वमसि इस महा वाक्य में बलात्कार से होती है ।॥३८॥ तत्त्वमसि इत्यादि महा वाक्यों में तन्पद त्वंपद ये दोनों विरुद्ध धम वाले होने से जल अग्नि के समान इन वाच्यार्थो का अभेद नहीं बन सकता, इसलिये एक वस्तु विषयक सामानाधिकरण्य रूप ऐक्य साधने वाला वस्तु श्रभेदान्वय रूप चौथा पक्ष भी भाग त्याग लक्षणा से ही सिद्धांत में स्वीकार किया गया है। अत: श्रब एकत्वरूप वाक्यार्थ का भागः त्यागः लक्षणा से तीन श्लोकों में निश्चय कराया जाता है मंजु भाषिणी छन्द् । अभिधेयमत्र पदयोरसंगतं न विरुद्धधर्मियुग मेक्यमेति यत् । उपयोगमूल घटनाद्ययोगतो न • • यहा तत्त्वं पदों का वाच्याथ श्रसंगृत है क्योंकि दो विरुद्ध धर्मियों की एकता नहीं बनती । और वाच्यार्थ
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