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तीसरा प्रसिद्ध नहीं है । तत्वं इन दोनों पदों में सें किसी
एक पदमें भाग त्याग लक्षण नहीं है क्योंकि उसके निश्चय
का कोई फल नहीं है ॥४०॥
(इह) ‘गंगायांघोषः' गंगा पर घोष है; इस दृष्टांत
वाक्य में (गंगा तीरमिब) जैसे अन्वय के योग्य गंगा और
उसके प्रवाह का योगी दोनों से भिन्न श्रीगंगाजी का किनारा
रूप तीसरा पदार्थ प्रसिद्ध है, वैसे (इह) तत्त्वमसि इस
महा वाक्य में (अन्वये योग्यं वाच्य संगितृतीयं नच प्रथितम् )
अन्वय के योग्य अन्यतर पदार्थ का संग वाला कोई तीसरा
पदार्थ प्रसिद्ध नहीं हैं । भावार्थ यह है कि शक्य अर्थ के
परित्याग पूर्वक अर्थान्तर की प्रतीति जहल्लक्षणा कहा जाता
है। जैसे 'यष्टी: प्रवेशय' लकड़ियों को भीतर जाने दो इस
वाक्य में यष्टि रूप शक्यार्थ के त्याग पूर्वक यष्टि पद की
यष्टिधर पुरुप में लक्षणा है। और ‘विष भुक्त्व' विष का
भोजन कर इस वाक्य में विप भोजन रूप शक्यार्थ के परित्याग
पूर्वक शत्र के घर में भोजन निवृत्ति में लक्षणा है अर्थात् प्रथम
उदाहरण में अन्य शक्यार्थ जो यष्टिधर पुरुप है वह लक्षित
हैं और दूसरे उदाहरण में अन्य शक्यार्थ जो शत्रु गृह में
भोजन निवृत्ति है वह लक्षित है । जैसे इन वाक्यों में स्वार्थ
जहल्लक्षणा संभव है, तैसे ही तत्त्वमसि महा वाक्य में तत्त्व
पदां के वाच्यार्थो के परम्पर अन्वय के योग्य होने पर भी
तत्त्रं पदाथ से श्रन्यतरः पदार्थ का श्रमन्वया तीसरा कोई
पदार्थ प्रसिद्ध नहीं है। निष्कर्ष यह है कि ब्रह्मा चेतन और
साक्षी चेतन तत् पद् और त्वं पदके वाच्य में ही प्रविष्ट