माने बिना नहीं हो सकती ॥७॥
अन्य मतों के साधनोंका अनुवादकरके दूषित करते हैं
केचित्कर्मेव काम्योज्झित मुदित पद प्राप्त्यु
पायं प्रतीतास्तञ्चोपास्ति च मुक्तौ मिलितमथ
परे साधनं संगिरन्ते । अन्ये तु ज्ञान कमभय
मितिमतिभिः स्वाभिरुत्प्रेक्षमाणा ज्ञानादेवेति
वाक्याद्वयमिह सहसा नानुमन्यामहे तान् ॥८॥
कोई कामनासाहित कर्म को ही मुक्ति का साधन निश्चय करते हैं, कोई कर्म और उपासना दोनों को मुक्ति का साधन कहते हैं और कोई कर्म और ज्ञान दोनों साथ मुक्ति का साधन कहते हैं । इस प्रकार अपनी बुद्धि के अनुसार वेदार्थ की कल्पना करते हैं। “केवलज्ञान से कैवल्य की प्राप्ति होती है'इस श्रुतिवाक्य के अनुसार बिना विचार ही हम उनका यहां अंगीकार नहीं करते ॥८॥
( केचित् ) भाट्ट के एकदेशी और प्राभाकर इस प्रकार (प्रतीताः) निश्चय करत हैं कि (काम्योज्झितम्) फल की इच्छा को न करके किया हुआ नित्य नैमित्तिक (क्रूमैव) कर्म ही (उदित पद प्राप्त्युपायम्) पूर्व कथनं क्री हुई मुक्ति का साधन है। ( अथपरे) इन उक्त मतवालों से अनंतर भतृ प्रपंच, भास्कर आदिक विद्वान् ( तत् च उपारितंच ) अग्नि होत्रादि कर्म और प्राणदि उपासना, यह दोनों (मिलितम् )