एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
स्वाराज्य सिद्धिः|तृतीय मकरण
शंका-वेदांत वाक्यों के विचारजन्य अखंडाकारवृत्ति से
अध्यारोप और अपवाद नामक पूर्व उक्त दोनों प्रकरणों में
प्रतिपादित अद्वितीय प्रत्यगात्मा से अभिन्न ब्रह्म का साक्षात्कार
होता है यह जो पूर्व कहा वह कहना नहीं बनता, क्योंकि वाक्य
से अपरोक्ष ज्ञान होता है, इस बात की विद्वानों में प्रसिद्धि
नहीं है।
इस प्रकार की शंका के होने पर श्राचार्य वाक्य से अपरोक्ष
ज्ञान का होना सिद्ध करते हैं
मंजुभाषिणी छन्द ।
अपरोक्षवस्तु विषयेति शब्दजाप्यपरोक्षतां न
विजहात्यखंडधीः । निपुणं निशम्य दशमस्त्व
मित्यदो वचनं नहेि स्वमुपलब्धुमिच्छति ।।१।।
शब्द से उत्पन्न हुश्रा अखंडाकार वृत्तिरूप ज्ञान अप
रोच्च श्रात्मवस्तु होने से अपनी अपरोक्षता को नहीं छोड़ता,
जैसे दशमा तू है ऐसे पथिक के वचन सुनकर फिर वह
अपने को जानने की इच्छा नहीं करता ॥१॥