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स्वाराज्य सिद्धिः

दुशावतारी) और न मैंने दश अवतार कभी धारण किये हैं अथवा जाग्रत श्रादिक दशाओं में अर्थात् अवस्थाओं में अव तरणशील भी नहीं हूं । (न मे प्रपंचः परिपालनीयः) मुझेपालन करने के लिये कोई जगत् भी नहीं है अथवा मुझे सत्यरूप से यह जगत् भी स्थापन करने के योग्य नहीं है (तथापि ) तो भी (प्रभविष्णुः) सर्व जगत् का परिपालक प्रसिद्ध जगदीश्वर रूप (विष्णुः अस्मि) व्यापनशील ऐसा विष्णु में हूँ।

प्रसिद्ध विष्णु भगवान् ल६मा रूप माया वाला ह तथा शेषशायी है तथा चक्रायुधधारी है, मत्स्यादिक दश अवतारधारी है तथा संसार का परिपालक है । मेरा इनमें से कुछ भी नहीं है फिर भी में विष्णु हूं यह आश्चर्ग है ॥३८॥

अब विद्वान् श्रपती शिवरूपता को गाता है

न मूर्तयोऽष्टौ विषमा न दृष्टिर्नभूतिलेपो न गति

वृषेण । न भोगि संगो न च कामसंगस्तथापि

साक्षात् परमः शिवोऽहम् ॥३९॥

मेरे आठ शरीर नहीं हैं भेद दृष्टि नहीं है, भस्म मैं कभी धारण नहीं करता, बैल पर बैठता नहीं, कभी सर्प को. पास नहीं रखता, कांम को मैंने जलाया नहीं तो भी म साक्षात् परम शिव हूँ ॥३६॥

(न मूर्तयः अष्टौ) मेरी ईशान आदि आठ मूर्तियां नहीं हैं (न विषमा दृष्टिः) और न मेरे तीन नेत्र अर्थात् भेद् दृष्टि ही है । (भूतिलेपो न) और न मैं कभी भस्म धारण करता हूं (न वृषेण गतिः) और मेरा वृषभ वाहन ही है । (न भोगि