पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/४

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( ख ) है । यह टीका वर्तमान में मुद्रित है। इस प्रकार इस गंगाधरेंद्र सरस्वती की गुरु परंपरा तथा शिष्य परंपरा विद्वानों की ही हुई है। इन्ही गंगाधरेंद्र सरस्वती ने स्वाराज्यसिद्धि नाम का ग्रंथ लिखा है । इस पर संस्कृत टीका भी इन्होंने स्वयं ही लिखी है परन्तु वह वर्तमान में मुमुलु जनोंकी पुण्योपरति से दुर्लभसी है । इस पर भाषा टीका'अद्यावधि किसी विद्वान् ने नहीं लिखी है। पंजाबदेशांतर्गत माझा देश में लब्धजनि निर्मलस्सृतानुगामी श्री ६ पं० गुलाबसिंहजी ने इस स्वाराज्यसिद्धि का ही आनुपूर्वी अनुकरण मोक्ष पंथ नाम से भाषा छंदों में लिखा है। यह अनुकरण तो अति उत्तम है परन्तु मूल श्लोकों के साथ साथ न रखकर लिखा गया है इसलिये इस अपूर्व ग्रंथ पर मूल श्लोकों के साथ हिंदी भाषा टीका अपेक्षितं थी, क्योंकि वर्तमान काल में हिंदी भाषा का बड़ा प्रचार है। इस प्रकार विचार कर इस प्रथ पर मेरा कभी कभी हिंदी टीका लिखने का विचार तो हुश्रा करता था परन्तु कारण विशेषों से वह विचार तिरोधान होजाता था । संवत् विक्रमी १९९० की अर्धकुभी हरिद्वार में मेरा शरीर पधारा और श्रीकृष्ण स्वरूपानुरसिक कृष्ण मूर्ती परमहंस श्रीब्रह्मानंदजी भी अर्धकुभी हरिद्वार में पधारे । श्राप हमारे मित्रवय्र्य सखा हैं । आपका दर्शन परमानंदप्रदं है। आपने ग्रंथों के प्रसंग से कहा कि श्राप स्वाराज्यसिद्धिं पर सरल हिंदी भाषा टीका लिंखिये में इसको मुद्रित करवाऊगा । इस प्रकार श्रीमान् मित्रवर की अनुमती से इसं स्वाराज्यसिद्धि पर यह टीका मैंने लिखी है जिंसका नाम सरलान्वय पद्य काशिका रक्खा गया है।