पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/६२

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स्वाराज्य सिद्धिः


कर्म है. यज्ञदत्त नाम वाला मैं हूँ, इस श्रभिमान का नाम नामिक कर्म है। मैं पूज्य श्रार्हत गुरू के शिष्य वंश में प्रविष्ट हूं, इस श्रभिमान का नाम गोत्रिक कर्म है । और शरीर की स्थिति अर्थक कर्म का नाम आयुष्यक कर्म है अथवा शुक्र शोणित मिश्रित का नाम आयुष्यक है, उस तत्व ज्ञानानुकूल देह परिणाम शक्ति का नाम गोत्रिक है। शक्त हुए तिस द्रवीभाव रूप कल लावस्था का और बुद्बुदावस्था की प्रारंभिक क्रिया विशेष का नाम नामिक है। और उस सक्रिय का जठराश्रन्नि करके और वायु करके ईपत् घनी भाव का नाम वेदनीय है । यह उक्त विकल्प से कहे हुए चारों कर्म तत्त्वज्ञान के अनुकूल होने से अथवा तत्वावेदक शुक्ल पुद्गल के अर्थ होने से प्रघाति कर्म कहे जाते हैं। यह आठ प्रकार का कर्म ही जन्म का कारण होने से बंध कहा जाता है, इस प्रकार अपने तंत्र संकेत कल्पित पदार्थो की सप्त भगी न्याय से अनेकान्तिकता को भी कहते हैं। अर्थान् सत भगा न्याय स एक एक पदाथ का सात सात प्रकार का भा कहते हैं। सप्त भगी न्याय यह है—
स्यादस्ति स्यान्नास्ति स्यादस्ति 'च नास्ति च स्यादवक्तव्यः स्यादस्तिश्चांवक्तव्यश्च स्यान्ना स्तिचावक्तव्यश्च स्यादस्तिच नास्तिचावक्तव्यश्चेति
स्यात् यंह श्रव्यय तिङत प्रतिरूपक कथंचिद् अर्थवाला है । स्यात् अस्ति. नाम कथंचित अस्ति अर्थात् किसी प्रकार से है, जैसे घटादि सर्वात्मना सदेक रूप होने पर भी प्राप्य रूप से भी वह घटादिक है ही, अत: उस घटादिक की प्राप्तिके लियेयत्न नहीं करना पड़ेगा। इसकारण घटत्वादि रूप से कथंचित् सो घटादि है और प्राप्यादिरूप करके कथंचित् सो धटादि नहीं हैं। इंस प्रकारं उक्त न्याय से वस्तुमात्र को अनेक रूपता मंतव्य है। •