पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/७

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सरल हिन्दी भाषा में वेदान्त सम्बन्धी पुस्तकें लिखकर श्रअथवा अनुवाद करके और संस्कृत साहित्य के वेदान्त सम्बन्धी उव कोटी के ग्रंथों का हिन्दी भाषा में सरल अनुवाद करके अथवा कराकर प्रकाशित करके साधारण जनता में श्रध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार करना इस कायालय का मुख्य उदश ह । ब्रह्मसूत्र शांकर भाष्य का अनुवाद् तथा ५१ उपनिषदों का श्रअनुवाद् इसी उद्देश की पूर्ति में हुआ है । स्वाराज्य सिद्धि वेदान्त का एक छोटा सा काव्य मय ग्रन्थ है । विषय दार्शनिक होते हुए भी इसकी भाषामें दार्शनिक विषय के गांभीर्य को निभाते हुए भी प्रचुर लालित्य विद्यमान है। इसके टीकाकार तथा उनको जिस महात्मा ने इस कार्य के लिये उत्साहित किया कार्यालय दोनों महानुभावों से अपरिचित है और एक तीसरे ही महात्मा के कहने से इसकी हस्तलिखित कॉपी कार्यालय में पहुँचादी । श्रीमत् परमहंस परिव्राजकाचार्य स्वामी भास्करानंद सरस्वती कृत संस्कृत कवल्य कल्पद्रम समाख्या जा संवत् १९४८ मं लिखी गई थी उसीके अनुसार अनुवाद किया गया है। अनुवाद प्रचलित शुद्ध भाषा में न था और उसकी वाक्य रचना में भी अन्तर था इसलिये इसके संशोधन में श्रत्यंत ही परिश्रम करना पड़ा है। इसके अलावा पाठकों के सुभीते के लिये श्लोकों के नीचे सरलार्थ दिया गया है इस प्रकार अनुवाद का कलेवर ही बदल गया है। अब हम समझते हैं कि यह मुमुलुओं को अधिक हितकर होगा । ब्रह्मचारी विष्णु, ता० ५-७-३४ सम्पादक-वेदान्त केसरी ।