पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/७४

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स्वाराज्य सिद्धिः

नाश ही होगा । इन्द्रिय समुदाय आत्मा है ऐसा कहो तो अंध तथा मूक लोग मरेंगे । देखे सुने का कथन होने से एक इन्द्रय श्रात्मा नहा घटता श्रीर समुदाय श्रात्मा का निरूप्रण भी नहीं बन सकता । स्वप्न दृष्टा की सिद्धि न होगी तथा मरण और सोने में इन्द्रियलय समान ही है इससे सोने में भी भय प्राप्त होगा । इसलिय इन्द्रियों को श्रात्मा मानना असंगत हें ॥३३॥
(खानाम्) इन्द्रियों को (आत्मत्ववादे) आत्मा मानने वालों के मतमें (देहीन्माथ प्रसंग: ) देहका उन्मथन प्रसंग प्राप्त होगा । क्योंकि, (प्रतिनियति गतौ) इन्द्रिय इन्द्रिय के प्रति आत्मत्वता का तुम्हारे मत में निश्चय है, इसलिये भिन्न भिन्न दिशा में एक ही काल में सर्व इन्द्रिय रूप श्रात्मा अपने अपने विपयके ग्रहण करने अर्थ प्रवृत्त होंगे और इस प्रकार विरुद्ध दिशा की प्रवृत्ति से शरीर का मथन ही होगा । क्योंकिं लोक में भी देखा गया है कि (स्वामिनानात्वदोषात् ) एक ही पदार्थ स्व स्य कार्य के लिये एक ही काल में भिन्न भिन्न दिशाओं के देशों में जाता है बहुत स्वामियों द्वारा खेचा हुआ देह नाश को प्राप्त हो जायगा। और सर्व ही स्वामियों के सम बल होने पर वह पदार्थ श्रक्रिय भी हो सकता है। यदि सब मिले हुए इन्द्रिय ही आत्मा है, यह पक्ष है, तो इस पक्ष का भी एक एक इन्द्रिय की श्रात्मता के खंडन की तरह खंडन किया जाता है। (समुदितविषये ) सब ही इन्द्रिय मिल करके आत्मा बनता हो तो (अन्धमूका मियेरन् ) श्रअंध और मूक लोग तो मर ही जायेंगे, क्योंकि समुदाय घटक सामग्री में किंचित् विनाश हुए तादृश्य समुदायरूप आत्मा का