द्रव्योंको मायाका अवयव लिखा है इसलिये ही शास्रमें आकाश
की उत्पत्ति तथा नाश लिखा है और आत्मा से भिन्न सर्व
अनात्म पदार्थ अनित्य है यह भी लिखा है । ब्रह्म और श्रात्म
एक ही है, इसलिये ब्रह्म में अनात्मता की शंका अप्राप्त है (च )
वैसे ही ( धिषणा ) चैतन्यरूप ज्ञान (न तद्धर्मः) द्रव्य का
धर्म नहीं है (यत:) क्योंकि वह ज्ञान यदि जड़ द्रव्य का धर्म
होगा तो (जडा स्यात्) वह ज्ञान भी जड़ ही होगा । भावार्थ
यह है कि विरुद्ध स्वभाव बालों का धमधर्मी भाव नहीं देखा ,
क्योंकि जड़त्वधर्म वाले घट पट आदिक द्रव्य जड़त्व धर्मक
गुण वाले ही देखे हैं । इस कारण ज्ञान चेतन है और
आत्मारूप गुणी द्रव्य जड़ है, यह तुम्हारा निरर्थक वाणी
विलास है ॥४०॥
अज्ञानं स्वमथ सुखं सुषुप्तबुद्ध बुद्धस्त्वां स्मरसि
कथस्वतो जडात्मां । विज्ञानान्ययमयमित्यनेक
विरमिति केन वेत्स्यसाची ।। ४१!!
स्वस्वस्वप स जड़ श्रात्मा सुसुत क श्रज्ञान श्रार सुख
का कैसे स्मरण करता है ? असाक्षी असंख्य विज्ञानधारा
को किस ज्ञान से जानता है ? क्योंकि बहुत काल तक में
देखता हूँ ऐसा कहता हैं ॥४१॥
हे तार्किक ! (स्वतः) स्वयं से तो (जडात्मा त्वम्) तू जड़
स्वरूप है फिर (सुषुप्तबुद्ध' अज्ञानं स्वम्) सुषुप्ति में जड़ होने
से अननभूत अज्ञान के स्वरूप को तथा (अथ) सुषुप्तिकालीन
६ स्वा. सि.
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प्रकरणं १ श्लो०४१