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भाषाटीकासहिता। १०९

इदं कृतमिदं नेति द्वन्द्वैर्मुक्तं यदा मनः।।

धर्मार्थकाममोक्षेषु निरपेक्षं तदा भवेत् ॥५॥

अन्वयः-इदम् कृतम्, इदम् न ( कृतम् ), इति द्वन्दैः यदा मनः मुक्तम् ( भवति ) तदा धर्मार्थकाममोक्षेषु निरपेक्षम् भवेत् ॥ ५॥

। जिसके मनका द्वैतभाव नष्ट हो जाय अर्थात् यह कार्य करना चाहिये, यह नहीं करना चाहिये, यह विधिनिषेधरूपी इन्द्र जिसके मनसे दूर हो जाय, वह पुरुष धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारोंमेंभी इच्छा न करे, क्योंकि वह पुरुष जीवन्मुक्त अवस्थाको प्राप्त हो जाता है ॥५॥

विरक्तो विषयद्वेष्टा रागी विषयलोलुपः ।

ग्रहमोक्षविहीनस्तु न विरक्तो नरागवान्॥६॥

अन्वयः-विरक्तः विषयद्वेष्टा ( भवति ), रागी विषयलोलुपः (भवति ) ग्रहमोक्षविहीनः तु न विरक्तः (भवति ) न रागवान ( भवति ) ॥ ६॥

___ जो पुरुष विषयसे द्वेष करता है वह विरक्त कहाता है और जो विषयोंमें अतिलालसा करता है वह रागी (कामुक) कहाता है, परंतु जो ग्रहण और मोक्षसे रहित ज्ञानी होता है, वह न विषयोंसे द्वेष करता है, और न विषयोंसे प्रीति करता है अर्थात् प्रारब्धयोगा- नुसार जो प्राप्त होय उसका त्याग नहीं करता है और