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भाषाटीकासहिता। ३


चित्तके संदेहोंको दूर करनेके निमित्त और ब्रह्मविद्याके श्रवण करनेकी इच्छा करके अष्टावक्रजीसे पूंछने लगे। अष्टावक्रजीसे राजा जनक प्रश्न करते हैं कि-हे प्रभो ! अविद्याकरके मोहित नाना प्रकारके मिथ्या संकल्प विकल्पोंकरके वारंवार जन्ममरणरूप दुःखोंको भोगने- वाले इस पुरुषको अविद्यानिवृत्तिरूप ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है ? इन तीनों प्रश्नोंका उत्तर कृपा करके मुझसे कहिये॥१॥

अष्टावक्र उवाच।

मुक्तिमिच्छसिचेत्तात विषयान्विषवत्त्यज।

क्षमार्जवदयातोषसत्यं पीयूषवद्भज ॥२॥

अन्वयः-हे तात ! चेन् मुक्तिम् इच्छसि ( तर्हि ) विषयान् विषवत् ( अवगत्य ) त्यज । क्षमार्जवदयातोषसत्यम् पीयूषवत् ( अवगत्य ) भज ॥२॥

इस प्रकार जब राजा जनकने प्रश्न किया तब ज्ञान- विज्ञानसंपन्न परम दयालु अष्टावक्रमुनिने विचार किया कि, यह पुरुष तो अधिकारी है और संसारबंधनसे मुक्त होनेकी इच्छासे मेरे निकट आया है, इस कारण इसको साधनचतुष्टयपूर्वक ब्रह्मतत्वका उपदेश करूं क्योंकि साधनचतुष्टयके बिना कोटि उपाय करनेसेभी ब्रह्मविद्या फलीभूत नहीं होती है इस कारण शिष्यको प्रथम साधन-