पृष्ठम्:AshtavakraGitaWithHindiTranslation1911KhemrajPublishers.djvu/१७५

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भाषाटीकासहिता। १६६ तथा स्वरूपके साक्षात्कारसे दूर हो गया है अज्ञानरूप मल जिसका ऐसा ज्ञानी स्वभावसेही शांतिको प्राप्त होता है।॥ ७० ॥ शुद्धस्फुरणरूपस्य दृश्यभावमप- श्यतः।क विधिः क च वैराग्यं क त्यागःकशमोऽपिवा॥७॥ अन्वयः-शुद्धस्फुरणरूपस्य दृश्यभावम् अपश्यतः ( ज्ञानिनः ) विधिः क वैराग्यम् व त्यागः व अपि वा शमः च क ।। ७१ ॥ शुद्ध स्फुरणरूप अर्थात् स्वप्रकाशचेतनस्वरूप और दृश्य पदार्थोकोभी न देखनेवाले ज्ञानीको किसी कर्मके करनेकी विधि कहां ? और विषयोंसे वैराग्य कहां ? और त्याग कहां? तथा शांतिभो करना कहां? यह सब तो ता हो सकता है जब सांसारिक पदार्थाक वि हाट होती है ॥ ७१॥ स्फुरतोऽनन्तरूपेण प्रकृतिं च न पश्यतः । क्व बन्धः क च वा मोक्षः व हर्षेःक् विषादता॥७२॥ 1 अन्वयः-अनन्तरूपेण स्फुरतः प्रकृतिम् च न पश्यतः (ज्ञानिनः) - बन्ध. व मोक्ष कहः क वा विषान्ता च क ॥ ७२ ॥