पृष्ठम्:AshtavakraGitaWithHindiTranslation1911KhemrajPublishers.djvu/१८९

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भाषाटीकासहिता। १७७ जैसी अवस्था प्राप्त होय उसमेंही स्वस्थ रहनेवाला और किये हुए और कर्तव्यकर्मोके विषे अहंकार और उद्वेग न करनेवाला अर्थात् संतोषयुक्त तथा सर्वत्र आ- त्मदृष्टि करनेवाला जीवन्मुक्त ज्ञानी पुरुष तृष्णाके न होनेसे यह कार्य किया, यह नहीं किया ऐसा स्मरण नहीं करता है ॥ ९८॥ न प्रीयते वन्धमानो निंद्यमानो न कुप्यति । नैवोदिजति मरणेजीवने नाभिनन्दति॥९९॥ अन्वयः-(ज्ञानी) वंद्यमानः प्रीयते न निन्द्यमानः कुप्यति न; मरणे उद्विजति न; एव जीवने अभिनन्दति न ॥ ९९ ।। __ जो ज्ञानी है उसकी कोई प्रशंसा करे तो प्रसन्न नहीं होता है और निंदा करे तो कोप नहीं करता है, तिसी प्रकार मृत्युभी सामने आता दीखे तोभी ज्ञानी घबडता नहीं है और बहुत वर्षांपर्यंत जीवें तोभी प्रसन्न नहीं होता है । ९९ ॥ न धावति जनाकीर्ण नारण्यमुपशा- न्तधीः । यथा तथा यत्र तत्र सम - एवावतिष्ठते ॥१०॥ अन्वयः-उपशान्तधीः जनाकीर्णम् न धावति, (तथा ) अरण्यम् न (धावति) किन्तु यत्र तत्र यथा तथा समः एव अवतिष्ठते ॥ १००॥ १२