पृष्ठम्:AshtavakraGitaWithHindiTranslation1911KhemrajPublishers.djvu/३७

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भाषाटीकासहिता। २६

ऊपरके श्लोकमें शिष्यने अपना मोह गुरुके पास वर्णन किया । अब गुरुको कृपासे देह आत्माका विवेक प्राप्त हुआ तहां समाधान करता है कि, हे गुरो! मैं जिस प्रकार स्थूल शरीरको प्रकाश करता हूं तिसही प्रकार जगत्कोभी प्रकाश करता हूं, तिस कारण देह जड है तिसही प्रकार जगत्भी जड है. यहां शंका होती है कि, शरीर जड और आत्मा चैतन्य है तिन दोनोंका संबंध किस प्रकार होता है ? तिसका समाधान करते हैं कि, भ्रांतिसे देहके विषयमें ममत्व माना है यह मज्ञानकल्पित है, देहको आदिलेकर बंधा जगत् दृश्य पदार्थ है, तिस कारण मेरे विषयमें कल्पित है, फिर यदि सत्य विचार करे तो देहादिक जगत् हैही नहीं, जगत्की उत्पत्ति और प्रलय यह दोनों अज्ञानकल्पित हैं, तिस कारण देहसे पर आत्मा शुद्ध स्वरूप है॥२॥

सशरीरमहोविश्वं परित्यज्य मयाऽधुना।

कुतश्चित्कौशलादेवपरमात्माविलोक्यते॥३॥

अन्वयः-अहो अधुना सशरीरम् विश्वम् परित्यज्य कुतश्चित कौशलात् एव मया परमात्मा विलोक्यते ॥३॥

शिष्य आशंका करता है कि, लिंगशरीर और कारण शरीर इन दोनों का विवेक तौ हुआही नहीं फिर प्रकृतिसे पर आत्मा किस प्रकार जाना जायगा ? तहां गुरु समा-