पृष्ठम्:AshtavakraGitaWithHindiTranslation1911KhemrajPublishers.djvu/९६

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

८४ अष्टावक्रगीता।

अन्वयः-नानाश्चर्यम् इदम् विश्वम् किञ्चित् न, इति निश्चयी ( पुरुषः ) निर्वासनः स्फूर्तिमात्रः ( सन् ) न किञ्चित् इति शाम्यति ॥ ८॥

तहां शंका होती है कि, ज्ञानीके संकल्प, विकल्प स्वयंही किस प्रकार नष्ट हो जाते हैं अधिष्ठानरूप ब्रह्मका साक्षात्कारज्ञान होनेपर जगत् कल्पित प्रतीत होने लगता है और नानारूपवालाजगत्भी ज्ञानका आत्मस्वरूपही प्रतीत होता है कि, यह सम्पूर्ण जगत् मेरी (आत्माकी) सत्तासेही स्फुरित होता है ऐसा निश्चय होतेही ज्ञानीकी संपूर्ण वासना नष्ट हो जाती है और चैतन्यस्वरूप हो जाता है और उसको कोई व्यवहार शेष नहीं रहता है, इस कारण शांतिको प्राप्त हो जाता है और उसज्ञानीकी कार्यकारणरूप उपाधिनष्ट हो जाती है, क्योंकि ज्ञानीको संपूर्ण जगत् स्वप्नकी समान भासने लगता है ॥ ८॥

इति श्रीमदष्टावक्रमनिविरचितायां ब्रह्मविद्यायां भाषाटीकया सहितं ज्ञानाष्टकं नामैकादशं प्रकरणं समाप्तम् ॥११॥

अथ द्वादशं प्रकरणम् १२.

कायकृत्यासहःपूर्व ततो वाग्विस्तरासहः ।

अथचिंतासहस्तस्मादेवमेवाहमास्थितः॥१॥