पृष्ठम्:Brihat Stotra Ratnakara 1912.djvu/१०३

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शिवस्तोत्राणि । वासु कितक्षक कर्कोटक शंखकुलिकपद्ममहापद्मेत्यष्टमहाना- गकुलभूषणाय प्रणवस्वरूपाय चिदाकाशायाकाशदिक्स्व- रूपाय ग्रहनक्षत्रमालिने सकलाय कलंकरहिताय सक- ललोकैककर्त्रे सकललोकैकभर्त्रे सकललोकैकसंह सक- ललोकैकगुरवे सकललोकैकसाक्षिणे सकलनिगमगुह्याय सकलवेदांतपारगाय सकललोकैकवरप्रदाय सकललोकै- कशंकराय शशांकशेखराय शाश्वतनिजावासाय निराभा- साय निरामयाय निर्मलाय निर्लोभाय निर्मदाय निश्चि- ताय निरहंकाराय निरंकुशाय निष्कलंकाय निर्गुणाय निष्कामाय निरुपलवाय निरवद्याय निरंतराय निष्कार- णाय निरंतकाय निष्प्रपंचाय निःसंगाय निर्द्वद्वाय निरा- धाराय नीरागाय निष्क्रोधाय निर्मलाय निष्पापाय निर्भयाय निर्विकल्पाय निर्भेदाय निष्क्रियाय निस्तुलाय निःसंशयाय निरंजनाय निरुपम विभवाय नित्यशुद्धबुद्ध- परिपूर्णसच्चिदानंदाद्वयाय परमशांतस्वरूपाय तेजोरू- पाय तेजोमयाय जय जय रुद्र महारौद्र भद्रावतार म हाभैरव कालभैरव कल्पांतभैरव कपालमालाधर खट्टांग- खड्गचर्मपाशांकुशडमरुशूलचापबाणगदाशक्तिभिदिपाल- तोमरमुसलमुद्गरपाशपरिघभुशुंडीशतघ्नीचक्राद्यायुधभी- षणकर सहस्रमुख दंष्ट्राकरालवदन विकटाहासविस्फा- रितब्रह्मांडमंडल नागेंद्रकुंडल नागेंद्रहार नागेंद्रवलय नागेंद्रचर्मघर मृत्युंजय त्र्यंबक त्रिपुरांतक विश्वरूप