पृष्ठम्:Brihat Stotra Ratnakara 1912.djvu/१२१

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शिवस्तोत्राणि | ११३ खे । मदांधसिंधुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदम- द्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ ३ ॥ सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषले- खशेखरप्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः | भुजंगरा- जमालया निबद्धजाटजूटक श्रियै चिराय जायतां च कोरबंधुशेखरः ॥ ४ ॥ ललाटचत्वरज्वलनंजयस्फुलिंग- भानिपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम् | सुधामयूख- लेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरो जटा- लमस्तु नः ॥ ५ ॥ करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्वलद्ध- नंजयाधरीकृतप्रचंडपंचसायके | धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्र- चित्रपत्र कल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥ ६ ॥ नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहू निशीथिनीतमः प्रबं- धबंधुकंधरः । निलिंपनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥ ७ ॥ प्रफुल्लनीलपं- कजप्रपंचकालिमच्छटाविडंबिकंठ कंधरारुचिप्रबंधकंधरम् । स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधक- च्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥ ८ ॥ अगर्वसर्वमंगलाकलाकई- बमंजरीरसप्रवाहमाधुरीविजृंभणामधुव्रतम् ।स्मरांतकं पुरांतकं भवांतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥ ९ ॥ जयत्वदनविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्वि- निर्गमत्करालभालहव्यवाद । धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृ दंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तितमंचडतांडवः शिवः ॥ १० ॥