पृष्ठम्:Brihat Stotra Ratnakara 1912.djvu/१२२

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बृहत्स्तोत्ररताकरें - दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजोर्गरिष्ठरवलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः । तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेंद्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥११॥ कदा नि- लिंपनिर्झरीनिकुंजकोटरे वसन्विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः- स्थमंजलिं वहन् । विमुक्तलोललोचनाललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ १२ ॥ इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति संततम् | हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति ना- न्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥ १३ ॥ पूजावसानसमये दशवऋगीतं यः शंभुपूजन- मिदं पठति प्रदोषे । तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुसुखीं प्रददाति शंभुः ॥ १४ ॥ इति श्रीरावणविरचितं शिवतांडवस्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ४६. द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रम् | श्रीगणेशाय नमः ॥ सौराष्ट्रदेशे विदशेऽतिरम्ये ज्योति- र्मयं चंद्रकलावतंसम् | भक्तिप्रदानाथ कृपावतीर्ण तं सो- मनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ १ ॥ श्रीशैलसंगे विबुधातिसंगे तुलाद्वितुंगेऽपि मुदा वसंतम् | तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥ २ ॥ अवंतिकायां विहि- तावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् । अकालमृत्योः प रिरक्षणार्थं वंदे महाकालमहासुरेशम् ॥ ३ ॥ कावेरिका-