पृष्ठम्:Brihat Stotra Ratnakara 1912.djvu/२७२

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२६८ बृहत्स्तोत्ररत्नाकरे नीनां विषमदुष्टानां सर्वविषं हर हर आकाशभुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय सकल- मायां भेदय ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महाहनुमते सर्वग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकलबंधनमोक्षणं कुरु कुरु शिरःशूलगुल्मशूल सर्वशूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानंतवासुकितक्षककर्कोटककालियान् यक्षकुलज- लगतबिलगतरात्रिंचरदिवाचरसर्वान्निर्विषं कुरु कुरु स्वा- हा । राजभयचोरभयपरमंत्रपरयंत्रपरतंत्रपर विद्याश्छेदय छेदय स्वमंत्रस्वयंत्रस्वतंत्रस्व विद्याः प्रकटय प्रकटय सर्वारिष्टान्नाशय नाशय सर्वशत्रून्नाशय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ॥ इति बिभीषणकृतं हनुमद्वडवानलस्तोत्रं संपूर्णम् ॥