१९० ॥
नौमी तिथि मधु मास पुनीता ।
सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता ॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा ।
पावन काल लोक बिश्रामा ॥
सीतल मंद सुरभि बह बाऊ ।
हरषित सुर संतन मन चाऊ ॥
बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा ।
स्त्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा ॥
सो अवसर बिरंचि जब जाना ।
चले सकल सुर साजि बिमाना ॥
गगन बिमल सकुल सुर जूथा ।
गावहिं गुन गंधर्ब बरूथा ॥
बरषहिं सुमन सुअंजलि साजी ।
गहगहि गगन दुंदुभी बाजी ॥
अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा ।
बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा ॥
दो॰ सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम ।
जगनिवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम ॥
१९१ ॥
छं॰ भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी ।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी ॥
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता ॥
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर पति थिर न रहै ॥
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
माता पुनि बोली सो मति डौली तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ॥
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा ॥
दो॰ बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ॥