महाभारतम्-04-विराटपर्व-064
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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अर्जुनेन द्रोणादिपञ्चरथान्प्रत्यभियानम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-64-1x |
भीष्मं विजित्य संग्रामे कुरूणां मिषतां रणे। | 4-64-1a 4-64-1b |
आददानश्च नाराचान्विमृशन्निषुधी अपि। | 4-64-2a 4-64-2b |
द्रौणिरुवाच। | 4-64-3x |
कर्ण यत्तत्सभामध्ये बह्वबद्धं प्रभाषसे। | 4-64-3a 4-64-3b |
एषोऽन्तक इव क्रुद्धः सर्वभूतावमर्दनः। | 4-64-4a 4-64-4b 4-64-4c |
कर्ण उवाच। | 4-64-5x |
नाहं बिभेमि बीभत्सोः कृष्णाद्वा देवकीसुतात् । | 4-64-5a 4-64-5b |
सत्वाधिकानां शूराणां धनुर्वेदोपजीविनाम् । | 4-64-6a 4-64-6b |
पश्यत्वाचार्यपुत्रो मामर्जुनेन समं युधि। | 4-64-7a 4-64-7b |
अश्वत्थामोवाच। | 4-64-8x |
को दोषः कर्ण शूराणां वाचा साकं हि पौरुषम् । | 4-64-8a 4-64-8b |
युव्यस्व त्वमभीः पार्थं प्रपलायस्व मा रणात्। | 4-64-9a 4-64-9b |
वैशंपायन उवाच। | 4-64-10x |
तं समन्ताद्रथाः पञ्च परिवार्य धनञ्जयम्। | 4-64-10a 4-64-10b |
ते लाभमिव मन्वानाः क्षिप्रमार्च्छन्धनञ्जयम्। | 4-64-11a 4-64-11b |
बहुभिर्निशितैर्बाणैर्विविधैर्लोमवापिभिः । | 4-64-12a 4-64-12b |
ततः प्रहस्य बीभत्सुः सर्वशस्त्रभृतांवरः । | 4-64-13a 4-64-13b |
यथा रश्मिभिरादित्यः प्रच्छादयति मेदिनीम्। | 4-64-14a 4-64-14b |
न रथानां न नगानां न ध्वजानां न वाजिनाम्। | 4-64-15a 4-64-15b |
सर्वे शान्तिपरा योधाः स्वचित्तं नाभिजझिरे । | 4-64-16a 4-64-16b |
यथा नलवनं नागः प्रभिन्नः षाष्टिहायनः । | 4-64-17a 4-64-17b |
गाण्डीवस्य तु घोषेण पृथिवी समकम्पत। | 4-64-18a 4-64-18b |
ततो विगाह्य सैन्यानां मध्यं शस्त्रभृतांवरः । | 4-64-19a 4-64-19b |
संनियम्य हयानेतान्मन्दं वाहय सारथे । | 4-64-20a 4-64-20b |
पुरा ह्येष मया युक्तः स मे भवति पृष्ठतः ।। | 4-64-21a 4-64-21b |
विराटपुत्रो जवनान्भृशमश्वानचोदयत् ।। | 4-64-22a |
कर्ण उवाच। | 4-64-23x |
एषोपयाति बीभत्सुर्व्यथितो गाढवेदनः। | 4-64-22b |
तं तु तत्रैव यास्यामि नासौ मुच्येत जीवितात् ।। | 4-64-23a |
द्रोण उवाच। | 4-64-24x |
नासौ भयेन निर्यातो महात्मा पाकशासनिः। | 4-64-24a 4-64-24b |
यद्येनमभिसंरब्धं पुनरेवाभियास्यसि। | 4-64-25a 4-64-25b |
दिष्ट्या दुर्योधनो मुक्तो दिष्ट्या गावः पलायिताः। | 4-64-26a 4-64-26b |
क्रोशमात्रमपाक्रम्य बलमन्वानयामहे। | 4-64-27a 4-64-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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