महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-055
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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दुर्योधनेन धृतराष्ट्रंप्रति कृष्णादिभिः कुरुसमुच्छेदप्रतिज्ञापूर्वकपाण्डवसमाश्वासनश्रवणचकिताय स्वस्मै भीष्मादिभिरभयप्रदानकथनम् ।। 1 ।। तथा स्वपरपक्षयोः बलाबलनिरूपणपूर्वकं धृतराष्ट्रंप्रति समाश्वासनम् ।। 2 ।।
दुर्योधन उवाच। | 5-55-1x |
न भेतव्यं महाराज न शोच्या भवतां वयम्। | 5-55-1a 5-55-1b |
वने प्रव्राजितान्पार्थान्यदायान्मधुसूदनः । | 5-55-2a 5-55-2b |
केकया धृष्टकेतुश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षत। | 5-55-3a 5-55-3b |
इन्द्रप्रस्थस्य चादूरात्समाजग्मुर्महारथाः । | 5-55-4a 5-55-4b |
ते युधिष्ठिरमासीनमजिनैः प्रतिवासितम्। | 5-55-5a 5-55-5b |
प्रत्यादनं च राज्यस्य कार्यमूचुर्नराधिपाः । | 5-55-6a 5-55-6b |
श्रुत्वा चैवं मयोस्तास्तु भीष्मद्रोणकृपास्तदा। | 5-55-7a 5-55-7b |
ततः स्थास्यन्ति समये पाण्डवा इति मे मतिः। | 5-55-8a 5-55-8b |
ऋते च विदुरात्सर्वे यूयं वध्या मता मम। | 5-55-9a 5-55-9b |
समुच्छेदं च कृत्स्नं नः कृत्वा तात जनार्दनः। | 5-55-10a 5-55-10b |
तत्र किं प्राप्तकालं नः प्रणिपातः पलायनम्। | 5-55-11a 5-55-11b |
प्रतियुद्धे तु नियतः स्यादस्माकं पराजयः। | 5-55-12a 5-55-12b |
विरक्तराष्ट्राश्च वयं मित्राणि कुपितानि नः। | 5-55-13a 5-55-13b |
प्रणिपाते न दोषोस्ति सन्धिर्नः शाश्वतीः समाः। | 5-55-14a 5-55-14b |
मत्कृते दुःखमापन्नं क्लेशं प्राप्तमनन्तकम्। | 5-55-15a 5-55-15b 5-55-15c |
ते राज्ञो धृतराष्ट्रस्य सामात्यस्य महारथाः । | 5-55-16a 5-55-16b |
ततो द्रोणोऽब्रवीद्भीष्मः कृपो द्रौणिश्च भारत। | 5-55-17a 5-55-17b |
अभिद्रुग्धाः परे चेन्नो न भेतव्यं परन्तप। | 5-55-18a 5-55-18b |
एकैकशः समर्थाः स्मो विजेतुं सर्वपार्थिवान्। | 5-55-19a 5-55-19b |
पुरैकेन हि भीष्मेण विजिताः सर्वपार्थिवाः। | 5-55-20a 5-55-20b |
जघान सुबहूंस्तेषां संरब्धः कुरुसत्तमः। | 5-55-21a 5-55-21b |
स भीष्मः सुसमर्थोऽयमस्माभिः सहितो रणे। | 5-55-22a 5-55-22b |
इत्येषां निश्चयो ह्यासीत्तत्कालेऽमिततेजसाम्। | 5-55-23a 5-55-23b |
अस्मान्पुनरमी नाद्य समर्था जेतुमाहवे। | 5-55-24a 5-55-24b |
अस्मत्संस्था च पृथिवी वर्तते भरतर्षभ। | 5-55-25a 5-55-25b |
अप्यग्निं प्रविशेयुस्ते समुद्रं वा परन्तप। | 5-55-26a 5-55-26b |
उन्मत्तमिव चापि त्वां प्रहसन्तीह दुःखितम्। | 5-55-27a 5-55-27b |
एषां ह्येकैकशो राज्ञां समर्थं पाण्डवान्प्रति । | 5-55-28a 5-55-28b |
जेतुं समग्रां सेनां मे वासवोऽपि न शक्नुयात्। | 5-55-29a 5-55-29b |
युधिष्ठिरः पुरं हित्वा पञ्चग्रामान्स याचते। | 5-55-30a 5-55-30b |
समर्थं मन्यसे यच्च कुन्तीपुत्रं वृकोदरम्। | 5-55-31a 5-55-31b |
मत्समो हि गदायुद्धे पृथिव्यां नास्ति कश्चन। | 5-55-32a 5-55-32b |
युक्तो दुःखोषितश्चाहं विद्यापारगतस्तथा। | 5-55-33a 5-55-33b |
दुर्योधनसमो नास्ति गदायामिति निश्चयः। | 5-55-34a 5-55-34b |
युद्धे सङ्कर्षणसमो बलेनाभ्यधिको भुवि। | 5-55-35a 5-55-35b |
एकं प्रहारं यं दद्यां भीमाय रुषितो नृप। | 5-55-36a 5-55-36b |
इच्छेयं च गदाहस्तं राजन्द्रष्टुं वृकोदरम्। | 5-55-37a 5-55-37b |
गदया निहतो ह्याजौ मया पार्थो वृकोदरः । | 5-55-38a 5-55-38b |
गदाप्रहाराभिहतो हिमवानपि पर्वतः। | 5-55-39a 5-55-39b |
स चाप्येतद्विजानाति वासुदेवार्जुनौ तथा। | 5-55-40a 5-55-40b |
तत्ते वृकोदरमयं भयं व्येतु महाहवे। | 5-55-41a 5-55-41b |
तस्मिन्मया हते क्षिप्रमर्जुनं बहवो रथाः । | 5-55-42a 5-55-42b |
भीष्मो द्रोणः कृपो द्रौणिः कर्णो भूरिश्रवास्तथा । | 5-55-43a 5-55-43b |
एकैक एषां शक्तस्तु हन्तुं भारत पाण्डवान्। | 5-55-44a 5-55-44b |
समग्रा पार्थिवी सेना पार्थमेकं धनञ्जयम्। | 5-55-45a 5-55-45b |
शरव्रातैस्तु भीष्मेण शतशो निचितोऽवशः। | 5-55-46a 5-55-46b |
पितामहोऽपि गाङ्गेयः शान्तनोरधि भारत। | 5-55-47a 5-55-47b |
न हन्ता विद्यते चापि राजन्भीष्मस्य कश्चन। | 5-55-48a 5-55-48b |
ब्रह्मर्षेश्च भरद्वाजाद्द्रोणो द्रोण्यामजायत। | 5-55-49a 5-55-49b |
कृपश्चाचार्यमुख्योयं महर्षेर्गौतमादपि । | 5-55-50a 5-55-50b |
अयोनिजास्त्रयो ह्येते पिता माता च मातुलः । | 5-55-51a 5-55-51b |
सर्व एते महाराज देवकल्पा महारथाः। | 5-55-52a 5-55-52b |
नैतेषामर्जुनः शक्त एकैकं प्रतिवीक्षितुम्। | 5-55-53a 5-55-53b |
भीष्माद्रोणकृपाणां च तुल्यः कर्णो मतो मम। | 5-55-54a 5-55-54b |
कुण्डले रुचिरे चास्तां कर्णस्य सहजे शुभे । | 5-55-55a 5-55-55b |
अमोघया महाराज शक्त्या परमभीमया। | 5-55-56a 5-55-56b |
विजयो मे ध्रुवं राजन्फलं पाणाविवाहितम्। | 5-55-57a 5-55-57b |
अह्ना ह्येकेन भीष्मोयं प्रयुतं हन्ति भारत। | 5-55-58a 5-55-58b |
संशप्तकानां वृन्दानि क्षत्रियाणां परन्तप। | 5-55-59a 5-55-59b |
तांश्चालमिति मन्यन्ते सव्यसाचिवधे धृताः। | 5-55-60a 5-55-60b |
भीमसेने च निहते कोऽन्यो युध्येत भारत। | 5-55-61a 5-55-61b |
पञ्च ते भ्रातरः सर्वे धृष्टद्युम्नोऽथ सात्यकिः । | 5-55-62a 5-55-62b |
अस्माकं तु विशिष्टा ये भीष्मद्रोणकृपादयः । | 5-55-63a 5-55-63b |
प्राग्ज्योतिषाधिपः शल्य आवन्त्यौ च जयद्रथः। | 5-55-64a 5-55-64b |
श्रुतायुश्चित्रसेनश्च पुरुमित्रो विविंशतिः। | 5-55-65a 5-55-65b |
अक्षौहिण्यो हि मे राजन्दशैका च समाहृताः। | 5-55-66a 5-55-66b |
बलं त्रिगुणतो हीनं योध्यं प्राह बृहस्पतिः। | 5-55-67a 5-55-67b |
गुणहीनं परेषां च बहु पश्यामि भारत। | 5-55-68a 5-55-68b |
एतत्सर्वं समाज्ञाय बलाग्र्यं मम भारत । | 5-55-69a 5-55-69b |
इत्युक्त्वा सञ्जयं भूयः पर्यपृच्छत भारत। | 5-55-70a 5-55-70b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-55-18 नः अस्माभिः परेचेत् यद्यपि अभिद्रुग्धाः द्रोहविषयं नीताः तथापि न भेतव्यम् ।। 5-55-33 युक्तोऽभियोगवान्। दुःखोषित गुरुकुले ।। 5-55-34 उपावसं शिध्यत्वेन पर्यचरम् । 5-55-59 हन्यामेति वदन्तीति शेषः ।। 5-55-60 तान् संशप्तकान् अलं अर्जुनवधे पर्याप्ता इति मन्यन्ते ।। 5-55-67 त्रिगुणतस्त्र्यंशेन हीनम् । त्रिगुणा त्र्यंशेनाधिका ।। 5-55-70 विवित्सुः विज्ञातुमिच्छुः । प्राप्तकालानि कर्माणि ।। 5-55- 5-55- 5-55- 5-55-
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